मंगलवार, 14 जून 2011

रामदेव के बहाने आक्रामक होती सरकार ।

रामदेव के (अनशन)टूटने के बाद लगता है कि सरकार उत्साह से भर गयी ,और इस अतिरेक में सरकार ने भी वही राह पकड ली है जहॉ से रामदेव अधोगति तक पहुॅचे । अब यह साफ होने लगा है कि कालेधन के मुद्दे से रामदेव को कुछ अधिक लेना-देना नहीं था।उनके लिए यह सिर्फ एक नारा था ,जिसके सहारे उन्हें अपनी महत्चाकाक्षायें पूरी होती हुई दिखाई दे रही थी।लेकिन उनकी छलनी में ही इतने छेद थें कि न सिर्फ उनका बनाया हुआ माया जाल ही बिखरा, बल्कि जान बचानी मुश्किल हो गयी। अब तो लोग इस तथ्य के लिए भी तैयार है कि जॉच में खुद रामदेव के पास ही कालेधन का पता चल सकता है। शौर्य ,पराक्रम,वीरता की बात करने वाला और सरकार को ललकारने वाला व्यक्ति खुद किस तरह महिला वेश में छुपकर मैदान से भाग रहा था यह सबने देखा, बोतल बन्द पानीे के खिलाफ अभियान चलाने वाला व्यक्ति स्टेज में खुद बोतल बन्द पानी का इस्तेमाल कर रहा हो तो लोगों ने इनकी कथनी और करनी का अन्तर साफ देखा ।ऐसे ही तथ्यों से रामदेव को समर्थन मिलना बन्द हो गया और सरकार को लगने लगा है कि यही उचित समय है जब इस आंदोलन को कमजोर किया जा सकता है।लेकिन यह आकलन न सिर्फ सरकार की स्थिति को कमजोर करेगा बल्कि देश को अराजकता की ओर भी ले जा सकता है। रामदेव के बहाने इस मुद्दे को ही सरकार नकारने की कोशिश करती है तो इसकी बहुत बडी कीमत चुकानी पड सकती हैै ।क्योंकि भ्रष्टाचार एक महत्वपूर्ण मुद्दा तो है ही। कल को यदि कोई ऐसा व्यक्ति खडा हो गया जो भ्रष्टाचार को इस तरह नहीं देखता है कि विदेशों से कालाधन किस तरह देश में वापस लाया जाए या लोकपाल के दायरे में किनको लिया जाए और किनको छोड दिया जाए। हमारे देश में आज भी धन की कमी का कोई सवाल नहीं है। समस्या यह है कि प्रभावशाली लोग इसको हडप लेते हैं । फिर विदेशों से लाये जाने वाले धन को भी ये लोग हडप नहीं लेगें इस बात की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है। और सजा के भय से किसी को सदाचारी बनाना भी असम्भव है। यही भ्रष्टाचार की पहेली है। इन परिस्थितियों में जो भी व्यक्ति सत्ता में आयेगा वह भ्रष्टाचारी बन ही जाऐगा। या कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचारी ही सत्ता में आना चाहता है। शुरूआत में केवल इतना ही किया जा सकता है कि कि भ्रष्ट लोगों को जो समाजिक प्रतिष्ठा हासिल है उसे अनैतिक और समाज में हेय बनाया जाए।इससे अधिक कोई रेडिमेड फार्मूला तैयार करना कठिन है।
सरकार की भाषा और तेवर भी आपत्तिजनक है। उसका कहना है कि हमें जनता ने चुनकर कानून बनाने का अधिकार दिया है। इसलिए हमें किसी के परामर्श की जरूरत नहीं है।लेकिन सरकार भूल जाती है कि संविधान में इस बात को न सिर्फ रेखांकित किया गया है बल्कि उच्च सदन में समाज के विशेषज्ञों को नामांकित कर संसद सदस्य बनाने का भी विधान है। ताकि संसद में यदि कोई असंतुलन हो तो वह दूर किया जा सके।वास्तव में चुनाव प्रणाली में अब इतने दोष आ गये है कि समाज के विशेषज्ञों का राजनीति में आना असम्भव हो गया है। अब समय है कि सरकार नागरिक समाज के महत्व को स्वीकार करे, और हाकिम होने के गुरूर से भी दूर रहे। सरकार की हैसियत का आकलन अन्तर्राट्रीय स्तर पर मापा जाता है। देश के भीतर सरकार द्वारा हैसियत का प्रदर्शन करना अश्लीलता की श्रेणी में आता है।जिन पर देश की जिम्मेदारी है,उन्हें अपनी दुर्बलताओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।

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