गुरुवार, 11 अगस्त 2011

मुद््दा भ्रष्टाचार है ,लोकपाल नहीं।

16 अगस्त से मजबूत लोकपाल के पक्ष में अनशन की तैयारी जोरों पर है। सरकार की ओर से भी लोकपाल गठन पर एक प्रारूप तैयार है। किसी को भी अब लोकपाल गठन पर कोई एतराज नहीं है। इस पर लगभग सहमति है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल एक हथियार हो सकता है। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ उठे जनअसंतोष को केवल लोकपाल तक ही सिमित करने से इस आंदोलन के कमजोर होने की आशंका हो सकती है। आज सारा ध्यान लोकपाल पर ही केन्द्रित किया जा रहा है, जबकि इस पर कोई बहस थी ही नहीं ,बहस इस बात पर है कि भ्रष्टाचार को कैसे समाप्त किया जाए। लोकपाल मात्र एक सुझाव है जिससे कि भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। यह कोई जॉची-परखी तरकीब नहीं है कि इससे भ्रष्टाचार को रोक ही लिया जाएगा । खतरनाक बात यह है कि आज लोकपाल का मुद््दा भ्रष्टाचार से अधिक चर्चा में है। जहॉ से भ्रष्टाचारियों को घेरा जा सकता है उन सभी विकल्पों पर बात बन्द कर दी गयी है । अब लगता है कि लोकपाल ही मानो साधन और साध्य हो गये हैं। जबकि लोकपाल तो मात्र भ्रष्टाचार मिटाने का एक साधन है। दरअसल भ्रष्टाचार जितना व्यापक है उतनी ही व्यापक लडाई इसके खिलाफ होनी चाहिए तभी इस बुराई से छुटकारा मिल सकता है। हमें हर वह प्रयास करना है जिससे भ्रष्टाचारी हतोत्साहित हों यह काम केवल लोकपाल के भरोसे नहीं छोडा जा सकता है। यह किसी भी लोकपाल की सीमा और सामर्थ्य से बाहर की बात है। लोकपाल गठन तो इस दिशा में एक सुझाव और प्रयोग जैसा ही है इससे अधिक की उम्मीद करना ठीक नहीं है। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जनअसंतोष को यदि इस तरह समझा गया है कि सरकारी ढांचे में कुछ फेर बदल कर लोगों के गुस्से को ठंडा किया जा सकता है तो यह गलत है सरकारी मशीनरी में भ्रष्टाचार है और सरकार भ्रष्टाचार को प्रश्रय भी देती है लेकिन समस्या को हल करने और इसके समर्थकों को पराजित करने के लिए इस लडाई को जल्द ही दूसरे चरण में ले जाने की भी जरूरत है। इसके आभाव में भटकाव की आशंका हो सकती है।
सरकार ने इस महत्वपूर्ण तथ्य को समझ लिया है कि भ्रष्टाचार सरकारी और गैरसरकारी नहीं हो सकता है। इसलिए वह इस आंदोलन के प्रति गम्भीर भी नहीं है। जब तक हर प्रकार के भ्रष्टाचार पर सभी तरीकों से चोट नहीं की जाती तब तक लोगों की बैचैनी को आंदोलन में बदलने का काम बाकी ही रहेगा। अन्ना ने एक बेहतरीन शुरूआत की है। जाति, धमर्, क्षेत्र के नाम पर निकृष्ट किस्म की राजनीति का जो लम्बा दौर इस देश में चलाया गया, अन्ना उससे देश को बाहर निकाल लाए हैं यह एक बहुत बडी उपलब्धि है। भ्रष्टाचारियों के लिए लोगों के मन में हिकारत का भाव इस आंदोलन के कारण ही आया है। आगे की डगर में फिसलन हो ही सकती है। लेकिन इस डगर को छोडा भी कैसे जा सकता है।


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