मंगलवार, 30 अगस्त 2011

मौत से सजा का क्या तालमेल।

तीन अभियुक्तों को दी जाने वाली फॉसी की सजा पर मद्रास हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। बीच-बीच में फॉसी की सजा का प्रश्न उठता रहता है। लेकिन सवाल यह है कि फॉसी की सजा के नाम पर क्या किसी की भी वैधानिक तरीके से हत्या करना ठीक है ? हत्या अभियुक्त ने भी की है और प्रतिक्रिया में हत्या हम भी कर रहे हैं दोनों के बीच अन्तर क्या है ? क्या केवल कानूनी और गैर कानूनी का ही अन्तर है । मूल कृत्य हत्या है जिस पर दोनों ही पक्षों का समान विश्वास है। सवाल यह है कि हम अपराधी को सजा दे रहे हैं या उससे बदला ले रहे हैं, किसी को भी सजा देने का मतलब यह है कि अभियुक्त उस पीडा से खुद गुजर कर महसूस करे कि उसने जो किया वह ठीक नहीं था। भोगने की दशा में यह प्रक्रिया पूर्ण भी हो सकती है यह प्रबुद्ध लोगों के निष्कर्ष भी हैं। इस प्रक्रिया को ही सजा कहा जाता है। इसके लिए यह जरूरी है कि अभियुक्त को जीवित भी रहना होगा तभी यह प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।फॉसी को सजा कहना गलत है,मौत की कोई सजा हो ही नहीं सकती है मौत देने का मतलब है कि आप बदला ले रहे हैं। यदि ऐसा है तो इसे खुले रूप में कहा जाना चाहिए कि हत्यारे से बदला लिया जा रहा है यह हत्या के बदले हत्या  है। सजा की पूरी सोच और मनोविज्ञान का फॉसी से कोई तालमेल नही बैठ सकता है।
          बहुत से लोग समय-समय पर फॉसी देने की मांग उठाते रहते हैं। यह विचार करने योग्य विषय है कि कहीं अवचेतन में इंसान को मारने, मारने में भागीदार होने या इंसान को मरता देखने की विकृति इस मांग के पीछे तो काम नहीं कर रही है। ऐसे ही लोग दंगों की आड में लोगों की हत्यायें कर अपनी विकृति को तुष्ट कर लेते है। नरबलि की प्रथा भी शायद ऐसे ही लोगों की उपज थी इसके लिए देवताओं की बेदी को बहाना बनाया गया और आज न्याय के नाम पर फॉसी की वकालत की जा रही है। न्याय कानून और सजा ,इंसान से सम्बन्धित हैं इंसान को मारने का कोई भी तर्क हो ही नहीं सकता है। यह केवल विकृति है। कोई एक व्यक्ति शायद इंसानी गरिमा का पालन न भी कर सके लेकिन यह राज्य का कर्तव्य है कि इंसानी गरिमा को चोट न पहॅुचे यह सुनिश्चित किया जाए। नरभक्षी जानवरों तक को पकडकर नहीं मारा जाता है फिर इंसान को मारने की इच्छा जाग्रत क्यों होती है यह मनोरोग है और कुछ नहीं, हमें अपने मन में भी झांककर देखना होगा । अपराधी ने अपनी समझ के हिसाब और हमारी सुरक्षा चूक का फायदा उठाकर कुकृत्य किया बदले में हम भी अपराधी मानसिकता के लोगों जैसा व्यवहार करने लगें यह ठीक नहीं हैं।  बहस चलती रहनी चाहिए और तब तक इन वैधानिक हत्याओं पर भी रोक लगी रहे सवाल यह नहीं है कि हत्यारे के साथ कैसा व्यवहार किया जाए सवाल यह है कि हम कैसे हैं?



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