शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

देश को नहीं व्यवस्था को मोदी की जरूरत है।

दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कालेज में नरेन्द्र मोदी के सम्बोधन, आर0एस0एस0 द्वारा उनके समर्थन और कुंभ मेले में आयोजित विश्व हिन्दु परिषद की धर्म सभा में जिस तरह मोदी की रणनीति सफल होती दिख रही है उससे जाहिर है कि सब कुछ उनके पक्ष में जाता दिख रहा है बात यहीं तक सिमित नहीं है उनके तथाकथित विरोधि भी उनके लिए ही काम कर रहे हैं जिससे उनका प्रचार फैलता ही जा रहा है इस कारण  सुर्खियों में बने रहने की उनकी नीति सफल हो रही है, बाजार के इस दौर में सुर्खियॉ बटोर लेना काफी हद तक सफलता मानी जाती है। सवाल उठता है कि मोदी विरोधी भी उनके लिए कैसे सहयोग कर सकते हैं? मोदी का विरोध करने वालों में कोई गम्भीरता नहीं है और ना ही कोई स्पष्ट समझ है उन्हें पता नहीं कि मोदी देश को किधर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। वे सिर्फ मोदी को मुसलमान विरोधी की तरह पेश कर रहे हैं इससे मोदी और भी प्रचारित हो रहे हैं मोदी की भी यही राजनीति है कि मुसलमानों को मुद्दा बनाकर वोटों का धुव्रीकरण कर लिया जाए जिसे वे राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व का जामा पहना रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि मोदी को हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की कोई समझ हो। यह सब हवा-हवाई नारा ही है। सवाल उठ सकता है कि कांग्रेस ,वामपंथी और मुलायम सिंह टाईप की राजनीति मोदी के सामने इतनी दयनीय क्यों हो गयी है? पहली बात तो यह है कि इनकी भी राजनीति मोदी जैसी ही रही है फर्क केवल इतना है कि ये लोग अल्पसंख्यकवाद की राजनीति करते रहे और मोदी बहुसंख्यकवाद की नारा दे रहे हैं इसलिए राजनीति से उकताये लोगों के सामने यह नई डिश की तरह है। दूसरी बात यह है कि देश की स्थितियां इतनी खराब हो चुकी है कि लोग सडकों पर न उतर आयें जैसा कि मध्य पूर्व में हो रहा है और यूरोप ,अमेरिका सहित पूरी दुनियां में जैसा संकट व्याप्त होता जा रहा है उससे बचने का किसी भी राजनीतिक दल के पास कोई मार्ग नहीं है इसलिए यदि मोदी जनमानस को नया नारा दे पाते हैं तो कांग्रेस को भी कोई दिक्कत नहीं है वे इसमें मदद भी कर सकती है कम से कम यह व्यवस्था तो बची रहेगी। महान अर्थशास्त्री और ईमानदार छवि का मनमोहनी तिलिस्म अब टूट चुका है। इनकी योग्यता  का यह परिणाम है कि विकास दर के मामले में अब बंगलादेश भी हमसे बेहतर स्थिति में हैं। मोदी ने उन सारे सवालों को पीछे छोडने में सफलता प्राप्त कर ली है जो कि चुनावों में मुख्य मुद्दा बन सकते थे ।बढती मंहगायी,सामाजिक असुरक्षा,दिशाहीनता फैलता जनअसंतोष, भयावह बेरोजगारी समेत सभी संस्थाओं के होते जा रहे पतन के कारण इन सभी राजनीतिज्ञों को कठिनाई हो सकती थी । लेकिन अब ये सभी मुद्दे पृष्ठभूमि में जाते दिखाई दे रहे हैं और सभी राजनीतिक पार्टियां इस बात से राहत महसूस कर रही हैं कि सामूहिक जवाबदेही की उलझन से मोदी ने सबको उबार लिया है इसलिए सभी किसी न किसी रूप में उनका सहयोग कर रहे है। यहॉ तक की तथाकथित धर्म सभायें भी। इन धर्मसभाओं ने लाखों किसानों की आत्महत्याओं पर कभी कोई बयान तक नहीं दिया, आर्थिक नीतियों के कारण देश लगभग गुलाम होने के कगार पर जा पहुॅचा है इस पर इनकी कोई सभा नहीं हुई लेकिन मोदी पर इतनी उत्सुकता के पीछे कारण स्पष्ट है कि साधु-सन्यासी भी इसी व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं आखिरी उनके भी अपने मठ मन्दिरों की व्यवस्था का सवाल है।

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