शनिवार, 7 मार्च 2015

”दीमापुर का न्याय“

दीमापुर में भीड का अपना न्याय सम्पन्न हुआ, निर्भया कांड के दौरान भी जिस तरह भीड द्वारा अपराधी को हवाले करो के जो नारे लगाये जा रहे थे कि वे उग्र होकर अपनी चरम परिणति तक पहुॅचे। अब अपराधी को दण्ड देने का अधिकार भीड के हाथ में आ गया लगता है,  वह इतनी दुस्साहसी हो चुकी है कि अपराधी को जेल से भी बाहर खींच कर मार डालने में भी सक्षम है, इस घटना से  यह साबित हो चुका है। भीड द्वारा सम्पादित इस कथित न्याय के जो खुलासे सामने आ रहे है उससे इस बात को बल मिलता है कि बलात्कार ”निर्भयाओं“ के साथ ही नहीं ही नहीं ”निर्भय“ भी बलात्कार के नाम पर मारे जा रहे है। एक आदमी को इस तरह खींच कर कैसे मारा जा सकता है? हमारे सामने सबूत है कि महिलायें भी झूठी,हत्यारिन,फरेबी और धोखेबाज  हो सकती हैं, गुजरात दंगों की एक चश्मदीद महिला गवाह ने किस तरह पैसे लेकर पीडितों के नाम पर सौदे बाजी की,अपना ईमान बेचा, महिला होने,अल्पसंख्यक होने सहित सभी बातों का भरपूर फायदा उठाया यह अदालती प्रमाण से भी साबित हो चुका है। इसलिए महिला अधिकार की आडम्बरपूर्ण बातें करने वालों को इन अपराधों की भी जिम्मेदारी लेनी होगी और जवाब देना होगा कि दीमापुर की इस लडकी ने किन परिस्थितियों में पूरे देश को शर्मसार करने वाली हरकत की और उस लडके को मरवाने में भूमिका अदा की जिसके साथ उसके कथित सम्बन्ध रहे थे। दहेज एक्ट के नाम पर हजारों बूढे सास-ससुर आज जेलों में बंद हैं अब अदालत ने इसमे नरमी बरतने के निर्दैश दिये हैं इसी तरह दलित एक्ट का भी दुरूपयोग होने के बाद उसे संशोधित किया गया । कहने का मतलब है कि हम समस्या को इस तरह हल करते हैं कि उससे समस्या कई गुना जटिल हो जाती है। अन्याय,अत्याचार को हम जाति,धर्म,लिगंभेद के आधार पर नहीं रोक सकते हैं और ना ही इस तरह किसी के लिए कोई अभयारण्य बनाया जा सकता है। कम से कम आज महिला दिवस की अगुआई वे लोग कर रहे हैं जिनकी समझ परम्परागत, रूढीवादी ट्रेडयूनियन नेताओं जैसी ही है, जिन्हें लगता है कि सारी दुनियां फैक्ट्री मालिक और मजदूरों में बॅटी है जिसमें पुरूष और महिलाओं के बीच सम्बन्ध फैक्ट्री मालिक और फैक्ट्री मजदूर के ही है। महिला दिवस अथवा मजदूर दिवस का मतलब इतना ही था कि एक मजदूर के नजरिए से दुनियां को कितना खूबसूरत बनाया जा सकता है।  और एक महिला के स्वप्न में यह दुनियां कितनी खूबसूरत हो सकती है इसे समझने की बजाए पूरे बगीचे को लडाई के मैदान में बदला जा रहा है। मानसिक दिवालिया लोग आज जमाने के रहनुमा बन गये हैं ।




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