शनिवार, 3 दिसंबर 2011

रूठने और मनाने के मायने ?





एफ0डी0आई के मुद्दे पर प्रणव मुखर्जी जिस तरह ममता को मनाने में लगे हैं वह स्तब्ध कर देने वाला हैं राष्ट्र की नीतियां तय करने के लिए मान-मनुहार निर्णायक होने जा रही हो हो तो अनुमान भी लगाना कठिन है कि क्या होने वाला है। कहा जाता है कि अभी कुछ समय पहले अमेरिका से परमाणु सहयोग के मुद्दे पर सरकार का समर्थन करने के लिए सांसदों का पक्ष खरीदा गया था।  और यह प्रस्ताव पारित करा लिया गया । नोट फॉर वोट के नाम से यह मुद्दा अब भी अदालत में विचाराधीन है, फैसला अब कुछ भी हो लेकिन अब यह लागू हो चुका है।आज यदि ”किसी तरह“ ममता जी को मना भी लिया जाए और एफ0डी0आई0 का प्रस्ताव सरकार पारित भी करवा ले तो उसकी विश्वसनीयता ही कितनी होगी? भारतीय राजनीति में आम सहमति का महत्व नकारात्मक होता जा रहा है। इस कथित आम सहमति के बदले में अयोग्य लोगों ने महत्वपूर्ण पद हथियाये हैं,यह किसी से छुपा नहीं है। कहा तो यहॉ तक जाने लगा है कि सी0बी0आई0 के प्रकोप से बचने के लिए भी सरकार के धुर विरोधी अन्तिम समय में उसके समर्थन में खडे होते रहे हैं, तथा उन्हीं नीतियों का समर्थन करने लगते हैं जिसका वे विरोध करते रहे। ऐसे में जनप्रतिनिधि की निष्ठा का सवाल भी महत्वपूर्ण हो जाता है यह शायद ही किसी ने सोचा होगा कि  जनप्रतिनिधि इतने कमजोर व्यक्तित्व का भी हो सकता है कि वह अपनी निष्ठा को लेकर बाजार में खडा हो जाए । ममता जी की एफ0डी0आई के मुद्दे असहमति हो ,ऐसा सम्भव ही नहीं है, दरअसल यह फैसला तो सरकार की नीतियों का ही एक चरण है।ऐसे में या तो ममता जी को सरकारी नीतियों का ही विरोध करना चाहिए या फिर इन नीतियों का समर्थन । जिन नीतियों से पूरी सहमति है उस पर ही आधारित फैसलों का विरोध कैसे किया जा सकता है?। ममता जी ही नहीं पूरा विपक्ष सरकार की नीतियों का समर्थन और फैसलों का विरोध करता है। यह विरोधाभाष लोगों के साथ धोखाधडी है।सरकार की नीतियों का समर्थन करने के अलावा आज विपक्ष के पास और कोई चारा भी नहीं है क्योंकि इनके पास वैकल्पिक और समानान्तर नीतियां नहीं हैं ।धारा 370 ,राम मन्दिर, आरक्षण ,जल विवाद महिला आरक्षण जैसे कुछऐक सामाजिक मुद्दों के अलावा कोई भी भिन्न आर्थिक नीति नहीं है।यह देश का भी दुर्भाग्य है कि विपक्ष वही है जिसको सत्ता में भागीदारी नहीं मिल पायी है। अन्यथा सब एक ही मार्ग के पथिक हैं। इनके पास दूसरा कोई पक्ष ही नहीं हैं इसलिए विपक्ष की ताकत केवल नुक्ताचीनी में ही चुक जाती है। एफ0डी0आई को ही लें यह किसी के मानने या मनाने का प्रश्न नहीं है।और न ही इस पर निर्भर होना चाहिए, इसके औचित्य या इसके विकल्प पर ही बात होनी चाहिए यह दो दलों अथवा लोगों के बीच का भी मुद्दा नहीं है। सारी बातें लोगों बीच भीे स्पष्ट होनी चाहिए। संसद में बहुमत की आंकडेबाजी अब निर्विवाद नहीं रही है यह संदेह के घेरे में है। संसद के प्रति लोगों के मन में सम्मान का यह मतलब नहीं लगाया जाना चाहिए कि लोग मान-मनुहार और रूठने मनाने का खेल खेलते रहें और पूरा देश देखता रहे, सांसद, संसद का पर्यायवाची भी नहीं है, वह संसद का एक सदस्य है यदि अपने हित को ध्यान में रखते हुए देश को प्रभावित करने वाली नीतियों का समर्थन अथवा विरोध करता है तो यह गलत है।  ममता जी अथवा प्रणव मुखर्जी को मानने और मनाने का क्रम बन्द करना चाहिए।एफ0डी0आई गलत है या सही स्पष्ट रूप से अपना पक्ष रखना चाहिए। सरकार जाए अथवा रहे ,सरकारें देश से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं इससे तो कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है।



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