रविवार, 10 अप्रैल 2011

अन्ना का अगला कदम

जनलोकपाल के मुद्दे पर देश भर में जो लहर उठी उससे जाहिर हो गया है कि लोगों में  अंसतोष, विस्फोटक स्थिति तक पहुॅचता जा रहा है। अन्ना की पहल ने बहुत सी बाधाओं को तोडकर कर एक मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी जनआंदोलन की झिझक को मिटा दिया है। अब समय है कि छोटे राज्यों की मांग ,अलग-अलग जातियों के लिए आरक्षण,नदी जल के बॅटवारे जैसे मुद्दों से हटकर आम आदमी की बुनियादी समस्याओं पर बात की जाए। यह तो सभी मानते हैं कि यदि राज्यों,समुदायों,धर्मों और जातियों के बीच कोई भी विवाद होता है तो वह निश्चित ही यह राजनीतिक पार्टियों का कुकृत्य है। जो लोगों के बीच विग्रह पैदा कर अपने लिए क्षुद्र लाभ उठाते रहते हैं । अन्ना हजारे ने राजनीतिक दलों के ऐजेेन्टों को किनारे कर वास्तविक जनआंदोलन की शुरूआत की है।जिसमें  राज्य,समुदाय,धर्म और जातियों के आधार पर किसी भी पहचान को मान्यता नहीं दी गयी है। यह एक दूरदर्शी कदम है। वास्तव में यह नये राष्ट्रीय आंदोलन शुरूआत है। जिसके परिणाम इस आंदोलन में तो दिखाई ही दिये इसकी शुचिता बनी रहे तो और भी सुखद परिणाम आते ही रहेगें। जनआंदोलनों के बारें में कहा जाता है कि यह प्रत्येक अवसर का उपयोग करता है और बिना देरी के हर बाधा को दूर भी कर लेता है।ऐसा ही अवसर अब सामने है, जबकि अन्ना हजारे और उनके साथी सरकार द्वारा गठित कमेटियों की बैठकों में उलझ सकते है।राजनीतिक पार्टियों की भी यही कोशिश होगी। इस अंतराल को यदि भरा नहीं गया तो जनआंदोलन के लिए यह नुकसानदेह स्थिति होगी । बेहतर होता कि अन्ना बातचीत के झमेले में खुद न ही पडते यह काम दूसरे लोग कर सकते थे। अन्ना आंदोलन को ही मजबूत करते यदि आंदोलन मजबूत रहा तो हर समस्या का निदान हो सकता है अन्यथा कमेटियों,समितियों जॉच आयोगों के भॅवर जाल से अब तक कोई नहीं बच पाया है और न ही इससे बाहर कोई साबुत निकल सकता है।

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