गुरुवार, 25 अगस्त 2011

अन्ना का हठ या उनका निश्चय।

यह कहना कठिन है कि अब लोग अन्ना के साथ खडे हो गये हैं या अन्ना लोगों की सही नुमाईंदगी कर रहे हैं लेकिन बात का आशय लगभग एक जैसा ही है कि पूरे तंत्र के  खिलाफ जिस दृढता के साथ अन्ना खडे हैं वह अविश्वसनीय जैसा है। नैतिकता में इतनी शक्ति होती है कि एक व्यक्ति ही पूरे सिस्टम के खिलाफ खडा हो सकता है।  अन्ना के जो तेवर हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि वे सिस्टम के गुरूर पर भी एक हथोडा मारना चाहते हैं । कल तक जो लोग अन्ना का हाल रामदेव जैसा करने की धमकी दे रहे थे अब वे अपने-अपने बिलों में दुबक गये है। रामदेव को अपना साम्राज्य भी बचाना था या कह सकते हैं कि आंदोलन की आड में अपना साम्राज्य बढाना था ऐसे लोग धमकाने में आ सकते हैं ये लोग जॉच से डर जाऐगें लेकिन सर्वहारा जिसका प्रतिनिधित्व अन्ना कर रहे हैं वे ऐसे ही दहाडेगें और संसद को उन्हें सुनना ही होगा। सरकार उन्हें सुन रही है तो इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार का हृदय परिवर्तन हो गया है। सारे हथकंडे अपनाने के बाद थक हार कर अब सरकार अन्ना से अपील कर रही है। अपील में ऐसी कोई मंशा भी नहीं झलकती है कि सरकार को एक बुजुर्ग नागरिक के असन्तोष की कोई फिक्र है इनका मकसद केवल इतना है कि किसी तरह यह घडी टल जाए, गद्दी बच जाए,सरकार बच जाए और बेईमानों की इससे अधिक फजीहत न हो।
 बहुत से लोग अन्ना से सहमत हैं लेकिन उनके मुद्दों से और तरीके से सहमत नहीं हैं  कुछ उनके सहयोगियों पर शंकालु है। कुछ इस बात से डरे हुए हैं कि इस तरह सिस्टम की प्रतिष्ठा कम हो सकती है। लेकिन इस सब के बावजूद लोगों का अन्ना आंदोलन को समर्थन
बढता ही जा रहा है। सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि मुझसे कुछ गलतियां हो सकती हैं लेकिन मैं गलत नहीं हॅू ।मुझे व्यक्तिगत तौर पर इस बात से कोई एतराज नहीं है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधीन लाया जाना चाहिए। मेरा व्यक्तिगत जीवन पाक-साफ है। इस तरह के बयानों से साफ है कि अब पूरा संसदीय तंत्र नैतिक रूप से हार चुका है। और जब कोई भी तंत्र जानबूझ कर अनैतिकता की रक्षा में जुट जाता है तो समस्या और भी गम्भीर हो जाती है। कुछ लोग अन्ना को हठवादी कह रहे हैं लेकिन वे दृढता से अपनी बात पर नहीं टिके होते तो यह आंदोलन यहॉ तक पहुॅच नहीं पाता, हठ और निश्चय का अन्तर लोग करेगें ही। सरकार जितनी जिद्दी है कि वर्षों से ईरोम शर्मिला अनशन पर हैं लेकिन इनका मुद्दा देश व्यापी नहीं हो पाया इसलिए उन्हें तिल-तिल मारा जा रहा है। यदि अन्ना का इतना असर नहीं होता तो क्या  उनके स्वास्थ्य की चिंता होती ? जाहिर है कि चिंता किसी और ही बात को लेकर है ।



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