शुक्रवार, 4 मार्च 2011

नजरियाः अरूणा के मित्रों का।

मुंबई अस्पताल में अरूणा शानबाग की अवस्था को जानकर लोगों के अनेकों मत सामने आ रहे हैं।कोई उन्हें इच्छा मृत्यु देने की बात कह सकता हैं ,कोई उनकी जिजिविषा और अदम्य साहस से अभिभूत है,ै कोई अपराधी को कम सजा की शिकायत कर सकते हैं। लेकिन अधिकाशं लोग उनकी देखभाल करने वालों के प्रति श्रद्धावनत् भी हैं। इन सभी बातों का अपना अलग-अलग महत्व है। जो लोग अरूणा की देखभाल कर रहे हैं यह उनका अपना स्वभाव और अपना सुख है, उनके अपने संस्कार हैं। लेकिन हमें उनकी कृतज्ञता व्यक्त करने का कोई भी अधिकार नहीं है क्योंकि अरूणा जितनी उनकी है उतनी ही हमारी भी है।यदि हम केवल उनकी कृतज्ञता व्यक्त करके संतोष महसूस कर लेते है, तो यह पाखंड है,हमारे चारों ओर अरूणा जैसी परिस्थिति मे लोग हैं। लेकिन हम उनसे किसी भी प्रकार जुड नहीं पाते हैैंं जब इस तरह 37 साल बाद किसी प्रसंगवश लोग इस बारे में बात करने लगते हैं तो बहुत से लोग संवेदना और सहायता तक को तत्पर हो जाते हैं। इसे गलत तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन इनमें से अधिकांश की उत्सुकता अपनी दरियादिली को एक उपयुक्त मंच देने की होती है।यह एक अरूणा की मर्मांतक व्यथा है ही ,लेकिन हमारा समाज अरूणाओं से भरा पडा है इस तरह की व्यथा और पीडाओं का कोई अंत नहीं है। जो तरीका अरूणा शानबाग के मित्रों ने पेश किया है यदि यह वास्तव में मिशाल बन सके तो 99 प्रतिशत दुखों का अंत निश्चित है।लेकिन हम तो मुशायरों में दाद देने के आदि हैं ,और लगभग यही अंदाज जब हम अरूणा के मित्रों के साथ भी लागू करते हैं तो इससे हमारा पाखंड तो उजागर होता ही है ,हम पाप के भी भागीदार हो जाते हैं।

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