रविवार, 20 मार्च 2011

मालेगॉव के विनायक।



मालेगॉव विस्फोट में असीमानन्द की स्वीकारोक्ति से पहले ही नौ लोगों से यह अपराध स्वीकार कराया जा चुका था। अब यह तथ्य सामने आ रहा है कि इन लोगों को बेकसूर जेल में डाला गया है और घृणित इलजाम भी लगाया गया ।न्याय की धारणा के अनुसार 99 अपराधी चाहे छूट जॉए लेकिन एक भी निरअपराध को सजा नहीं होनी चाहिए।ये नौजवान जिनको न सिर्फ जेल में डाला गया है ,बल्कि उन पर ऐसा इल्जाम भी चस्पा कर दिया गया है जिससे जेल की यंन्त्रणा हजार गुना बढ गयी है। यही बात डा0 विनायक सेन के साथ भी की गयी है,उन पर भी देश द्रोह का आरोप लगाया गया। जबकि इसे कोई भी नहीं पचा पा रहा है।यह एक अलग विषय है कि डा0 सेन जिस तरह समाज से लगभग बहिष्कृत लोगों को चिकित्सा उपलब्ध करा रहे थे,उसने इस देश के चिकित्सा माफियाओं को अपना शत्रु बना लिया था। आज जब चिकित्सा क्षेत्र मुनाफा कमाने का सबसे उपजाउ क्षेत्र माना जा रहा है तो डा0 सेन को चिकित्सा माफियाओं को चुनौति देने की सजा तो मिलनी ही थी। लेकिन देशद्रोही का इल्जाम किसी की भी समझ में नहीं आया।इस तरह उन लोगों की लम्बी फेहरिस्त है जो न केवल निरअपराध सजा भुगत रहे है।बल्कि देशद्रोह होने का दंश भी झेल रहे है।एक बार किसी को माओवादी कह दिया जाए या आईएस0आई0 का ऐजेट कह दिया जाए तो बडे से बडे हमदर्द को भी मदद देने में झिझक होगी यह बात पुलिस समझती है इसी मकसद से इन पर यह गम्भीर आरोप लगाया जाता है।
पुलिस जो करती है वह किसी से छुपा नहीं है इन्हीं कारणों से पुलिस की प्रतिष्ठा लगातार गिरती जा रही है। लेकिन छुटभय्ये नेता इस गम्भीर समस्या को जब वोटांे की राजनीति के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं तो पुलिस से भी खतरनाक हो जाते है।मालेगॉव कांड में इस तरह के नेता कहने लगे हैं कि यह मुसलमान होने के कारण इन लोगों को फॅसाया गया है। इस देश में मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है आदि-आदि.. ये लोग डा0 सेन जैसे प्रकरणों को ये किस तरह परिभाषित करेगें यह शायद इनके भी समझ में नहीं आएगा। पुलिस का दमनकारी रवैय्या और नेताओं की वोट राजनीति दोनों ही हद से आगे निकलते जा रहे है।

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