सोमवार, 18 अप्रैल 2011

ये जो सर्कस है!

सर्कस में बच्चों के इस्तेमाल पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है, वह सरकार को निर्देश तो है ही लेकिन पूरे समाज पर एक तीखी टिप्पणी भी है। इस निर्णय में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है ,वह हमारे कृत्यों के लिए एक सांकेतिक सजा जैसा है।शायद कोई यह मानने को तैयार नहीं होगा कि हम, बच्चों का भी इस्तेमाल करते हैं अथवा इसके समर्थक हैं, लेकिन कोई भी सरकार कोई भी राजनीतिक दल, कोई एन0जी0ओ0 या कोई भी समाज सुधारक इसकी चर्चा नहीं करता कि हम कैसे बच्चों का इस्तेमाल ढाबे से लेकर ईंट भट्टों,पटाखा उद्योग,कॉच उद्योग पत्थर तोडने से लेकर घरेलू काम, सर्कस और भीख के धंधे तक में करते और उसमें भागीदार भी हैं।ये लोग बच्चों को राहत दिलाते दिखना चाहते हैं। लेकिन जो तंत्र बच्चों का शोषण करता हैं । उस पर इस तरह कोई नहीं बोलता जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने बात कही है। बहुत से लोग हैं जो बाल मजदूरी के खिलाफ बयान देते रहते है, कुछ अनाथ बच्चों के पुर्नवास के काम में व्यस्त हैं, कुछ लोग बचपन बचाने में लगे हैं। लेकिन जो बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है उससे किसी का भी  लेना-देना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केवल बच्चों के सर्कस में काम करने पर रोक नहीं लगायी बल्कि उनको इस्तेमाल करने वालों को पर रोक लगायी है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। हम बात को पीडित के नजरिये से उठा रहे है।लेकिन कोर्ट ने इसको नकारते हुए उन आततायियों को कटधरे में खडा किया है।जो बच्चों के खिलाफ सक्रिय हैं। और निर्देश दिया है कि बच्चों का इस्तेमाल न किया जाए।
अब इस महत्वपूर्ण विषय में लीपापोती शुरू होगी ,सरकार इस सम्बन्ध में अधिसूचना जारी करेगी,कुछ ठिकानों पर छापेमारी होगी, बातों को तोडा-मरोडा जाऐगा ,मनमानी व्याख्यायें की जाऐंगी, जैसा कि भारतीय सर्कस संघ के सचिव श्री एम0 सी0 रामचंद्रन ने कहा भी है कि फिल्म उद्योग,विज्ञापन उद्योग और खेलों की दुनियां में बच्चे जिस तरह काम करते हैं ,वह एक कला है,इसी तरह सर्कस भी एक कला है,जिसे बचपन से ही सीखना होता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कला के बारे में कुछ कहा ही नहीं है। उन्होने तो सिर्फ इतना कहा है कि बच्चों का इस्तेमाल करना गलत है। इससे किसी कैसे इंकार हो सकता है? लेकिन शर्मिंदा होने की बजाए बयानबाजी को देखकर अभी नहीं लगता है कि हम इस बात का मतलब समझना भी चाहते हैं!

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