शनिवार, 11 जून 2011

लोक नहीं, भ्रष्ट-तंत्र है।

अन्ना हजारे का यह महत्वपूर्ण योगदान है कि भ्रष्टाचार अब निर्विवाद रूप से राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन चुका है। इस आंदोलन में यह सम्भावना है कि यह जल्द ही जाति ,सम्प्रदाय और प्रान्तों के प्रायोजित विवादों को यह अपने में समाहित करने की स्थिति हासिल कर सकता है। जिससे कि राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के बहुत से विवाद लगभग अप्रासंगिक हो जाऐगें ।लेकिन भ्रष्टाचार को छोटे से दायरे से निकाल कर उसकी पूरी व्यापकता में लोगों के सामने लाया जाना अभी भी बाकी है। भ्रष्टाचार को केवल पैसे की ही समस्या मानना गलत है।यह एकांगी नजरिया है। केवल आर्थिक भ्रष्टाचारियों को रोकने या देश को ऑडिटरों के हवाले करने से कोई हल निकलने वाला नहीं है। इनमें से कुछ लोग तो इतने कुशल हैं कि भ्रष्टाचार विरोधि भावना का भी इस्तेमाल अपने लाभ के लिए कर सकते हैंे ।
भ्रष्टाचार केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं बल्कि यह एक राष्ट्रीय चुनौति है।आज सैकडों लोग देश के अन्दर ही गोलीबारियों में मारे जा रहे हैं। वे सैनिक हों या माओवादी दोनों ही देश की सन्तानें हैं ,इससे भयानक भ्रष्टाचार क्या हो सकता है? कुछ लोग माओवादियों के मारे जाने पर उस तरह नहीं सोचते हैं कि देश का नागरिक अपने ही लोगों के हाथों मारा जा रहा है, लेकिन जितनी बडी संख्या में सुरक्षा बलों के जवान हर रोज मारे जा रहे हैं ,नेताओं के सिवाय किसी को भी विचलित कर देने के लिए यह काफी है, लोग भूख से मर रहे हैं, ईलाज के आभाव में मारे जा रहे हैं, निराश होकर लोग आत्महत्यायें कर रहे हैं,अवसाद में विक्षिप्त होते जा रहें हैं ,सुरक्षा बलों की गोलियों से मारे जा रहे हैं या सुरक्षा बल अपने ही देश के नागरिकों के हाथों मारे जा रहे है। इस सबकी जिम्मेदारी आखिर किसकी है, क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? भ्रष्टाचार को आर्थिक गडबडी तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। आर्थिक गडबडी तो भ्रष्टाचार का एक छोटा लक्षण मात्र है। हम इस तरह नहीं सोच सकते कि सेना के जवान मारे गये या माओवादी, ये दोनों ही देश के बेटे हैं ,इस प्रकार का गृह युद्ध तुरन्त बन्द होना चाहिए। जो नेता इस देश की व्यवस्था का हवाला देते हुए इस प्रकार की घटनाओं को हल्के तरीके से लेते हैं। उन्हें बताना होगा कि यदि यह आपकी व्यवस्था है तो अव्यवस्था किसे कहेंगे?दरअसल हमारे यहॉ उन लोगों की बहुत बडी जमात है, जो केवल हुकुमत करने के लिए ही हैं ।यह एक बहुत बडी समस्या बनते जा रहे हैं।इनकी अपनी परिभाषायें हैं और निष्कर्ष भी हैं,देश की वास्तविकताओं से इनको कुछ भी लेना देना नहीं है।

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