रविवार, 5 जून 2011

भ्रष्टाचार की त्रासदी और प्रहसन।

एक मशहूर उक्ति है कि कोई भी घटना पहली बार में त्रासदी होती है और उसे दोहराये जाने पर केवल प्रहसन होता है। अन्ना के तुरन्त बाद ,बाबा रामदेव द्वारा किये गये के आमरण अनशन में भी यही देखा गया। सरकार की कार्यवाही अपनी जगह पर है लेकिन इस घटना की पूरी पटकथा रामदेव ने ही लिखी है।वे इसकी जवाबदेही से बच नहीं सकते है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जिस आका्मकता ,हडबडी और जितनी भव्यता से यह आमरण अनशन आयोजित किया वह अपने शुरूआत से ही अस्वाभाविक लगा ,इस कारण बहुत से सवाल भी खडे हुए। बाबा का अनशन किसी भी तरह उस की भावना से मेल नहीं खाता हैं।जिसने गॉधी के आमरण अनशनों को जनजागृति का मंत्र बना दिया था । आमरण अनशन की मूल भावना यह है कि कोई भी व्यक्ति व्यथित होकर अनुभूति के उस स्तर पर पहुॅच जाए कि उसके लिए भोजन निगलना असम्भव हो जाता है।यह चरम अनुभूति की स्थिति है।इसका आयोजन नहीं किया जा सकता है बल्कि यह कब हो जाए इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कदम किसी भी व्यक्ति की आंतरिक दशा से संचालित होता है, जिससे लोग भी प्रेरित और आंदोलित होते हैं । यही इसकी ताकत भी है। इस गरीब देश में आमरण अनशन के नाम पर इतना भव्य आंदोलन होगा तो लोगों के कान खडे होना स्वाभाविक ही है। बाबा ने जिस तरह पॉच सितारा होटलों में सरकार से बातचीत कर अन्तिम क्षणों में कोई रास्ता निकालने की कोशिशें की उससे स्पष्ट तौर पर यह सन्देश मिला कि वे जल्दबाजी में भी हैं, यह कोई ऐसी बातचीत भी थी जिसमें बाबा ने अपने सहयोगियों को न भेजकर खुद ही जाना उचित समझा ।पूरे प्रकरण में आमरण अनशन को उन्होनंे एक आक्रामक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जबकि आमरण अनशन को लेकर किसी से भी इस तरह बातचीत नहीं हो सकती है ।यह तो आंदोलन की केवल प्रेरक शक्ति बन जाती है। जिससे आंदोलन तेज होता है,और सरकारों पर दबाव बनता है।बात यह भी है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा केवल सरकार और बाबा की बातचीत से कैसे तय किया जा सकता है? अभी तो आंदोलन विकसित किया जाना है।इस आंदोलन को अपने नारे गढने हैं ,रास्ता तलाशना हैं और जनमत तैयार करना है। रामदेव और सरकार किसी मुद्दे पर सहमत हो भी जांए तो इससे आम लोगों की कठिनाई कैसे दूर हो जाऐगीं ? भ्रष्टाचार पर जनआंदोलन ही सही रास्ता है फिलहाल कोई बातचीत नहीं । जो लोग इस मुद्दे पर सरकार से बातचीत की जल्दबाजी में है।वे गलत नीति अपना रहे हैं। फिलहाल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर फुटबाल जैसा ही खेल खेला जा रहा है कहने को तो ये भ्रष्टाचार को ठोकरों से मार रहे हैं। लेकिन अन्दरखाने खेल भी खेला जा रहा है।क्या यह सवाल नहीं है कि भ्रष्टाचारियों को फॉसी से लेकर तमाम किस्म के उन्मादी नारे लगाने वाले लोग केवल भ्रष्टाचार विरोधि भावना को हथियाना चाहते है। जैसे कि हर मुद्दे का एक विशेषज्ञ आंदोलनकारी पहले से ही है। कोई जल,जंगल,जमीन बचा रहा है कोई बच्चे,महिला,अल्पसंख्यक ,दलित कोई मानवाधिकार कोई सूचना अधिकार तथा कोई पर्यावरण का रक्षक है,पर्यावरण में भी कोई तो केवल पॉलीथीन पर ही व्याख्यान देते है। यह तय है कि ये सभी विषय विशेषज्ञ ईमानदारी से एकजुट हो जांए तो सरकारों के लिए इस तरह मनमानी करना असम्भव हो जाऐगा।

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