मंगलवार, 17 मई 2011

ऐशो-आराम के 34 साल के बाद अब विचारधारा !

ब्ंागाल विधानसभा चुनाओं के बाद कामरेड करात ने कहा है कि साम्यवाद खत्म नहीं हुआ है।प्रसंग ब्ंागाल विधानसभा चुनाओं का था और करात का बयान साम्यवाद के सम्बन्ध में है। जबकि इन दोनों के बीच बहुत फासला है यह भी कहा जा सकता है कि इनमें कोई तालमेल ही नहीं है। फिर भी कामरेड ने यह बयान दिया है तो इसके दिलचस्प निहितार्थों पर ध्यान देना जरूरी है। हो सकता है कि करात सी0पी0एम0 को ही साम्यवाद मानते हों ,या जल्दबाजी में इस पराजय को विचार का खत्म होने जैसा समझने लगे हों, इसलिए हडबडी में ं‘साम्यवाद‘ अभी खत्म नहीं हुआ है जैसे बयान दे रहे हों। करात जैसे लोग साम्यवाद का जितना इस्तेमाल कर सकते थे वे करते ही रहेगें ।मार्क्स ने जिस आदर्श स्थिति की कल्पना की और लेनिन ने इसे साकार करने के जिस तरह प्रयास किये इन बामपंथियों को उससे कुछ भी लेना देना नहीं है ये केवल उनकी तरह दिखना चाहते हैं उन जैसा होना नहीं ,यही इनका विरोधाभास है । अब ये कर्मकांडी मार्क्सवादी रह गये है।जाहिर है कि यह अधिक दिनों तक नहीं चल सकता है।दरअसल साम्यवादी होना एक उपलब्धि जैसा है जो इसे हासिल कर पाता है वह इस चक्कर में नहीं पडता है कि लोग उसे साम्यवादी कहें या न कहें । वह इसका आकलन खुद नहीं करता और न ही इस तरह का कोई दावा करता है। लोग यदि कहें कि यह व्यक्ति,संगठन या समाज साम्यवादी है तो सार्थकता है और इसका कुछ मूल्य भी है। जो लोग खुद ही साम्यवादी होने का दावा करते हैं वे वास्तव में हिप्पोक्रेट हैं।यह मुखौटा जैसा नहीं है कि आपने लगा लिया और हो गये साम्यवादी ।वास्तव में यह आत्मा जैसा है जब तक पूरा ही रूपान्तरण नहीं होगा तब तक कुछ भी कर पाना सम्भव नहीं है। जिस तरह संत या सूफी परम्परा में कोई दावा नहीं करता कि मैं संत हॅू या सूफी, लोग अच्छी तरह जानते हैं कि फलॉ-फॅला व्यक्ति संत या सूफी है। जो भी लोग संत या सूफी होने का दावा करते हैं,उनके दुकानदार होने में किसी को शक-शुबहा नहीं रहता है यह सब जानते हैं लगभग यही स्थिति बामपंथियों की भी है। वास्तव में विचार के स्तर पर साम्यवाद की चिंता करने की किसी की हैसियत नहीं है ,यह विचार हमारे व्यक्तित्व को बदल सके विचार की इतनी ही उपयोगिता है, इससे अधिक नहीं , जो लोग साम्यवादी विचार को एक कोडे की तरह लोगों पर फटकारते रहना चाहते हैं,ं वे अन्ततः बाममोर्चे जैसी अधोगति को प्राप्त होगें ही इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं ।लगभग आधी शताब्दी बीतने को है जो लोग अपने आपसी विवाद अब तक नहीं सुलझा पाये हैं और अलग गुटों में रहकर बाममोर्चे की राजनीति कर रहे हैं और लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं ,वे समाज में एकता और समानता कैसे स्थापित कर सकेगें? कम से कम इनको तो ंसाम्यवाद के विषय में बोलने से पहले कुछ सोचना भी चाहिए।

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