रविवार, 24 जुलाई 2011

नेता भी बडा खतरा हैं।

हमारे देश में नेता एक खौफनाक समस्या की तरह उभरते जा रहे है। समाज के सभी क्षेत्रों में पतन शायद इसी कारण होता जा रहा है क्योंकि आजकल के अधिकांश नेता श्रेष्ठतम व्यक्ति नहीं बल्कि निकृष्ठतम व्यक्ति होते जा रहे है। नेता का मतलब नैतिक होने से है नैतिक व्यक्ति के जीवन से लोग प्रेरित होते हैं ,उसका अनुसरण करते है। और जीवन में आने वाली कठिनाईयों का सहज समाधान पाते है, वही नेता है । वह नेता होने की दावेदारी कभी नहीं करता है। नेतागिरी को धंधे की तरह इस्तेमाल नहीं करता है। आज एक वार्ड मेंम्बर से लेकर छोटी सी ग्राम सभा का सभापति भी कार में घूम रहा है। ब्लॉक प्रमुख,जिला पंचायत सदस्य और अध्यक्ष की तो बात ही करना व्यर्थ है। विधायक और सांसद या मनोनीत सदस्य तो एकआध अपवाद ही हैं जिनसे आम आदमी बात भी कर सके ,मंहगी कारें,शानो-शौकत ,लाव-लश्कर और लोगों को लगभग खौफजदा करते हुए ये लोग किस तरह के नेता हो सकते है? इनकी भाव भंगिमा से लोग डरने लगे है, समाज का कूडा कचरा जितनी तेजी से नेतागिरी में उत्सुक होता जा रहा है, यदि उसे तुरन्त नहीं रोका गया तो देश को भयानक तबाही से गुजरना होगा। हो सकता है कि देश का वर्तमान स्वरूप ही न बचे ।
यह विचारणीय प्रश्न है कि हमारे नेता करते क्या है? यदि इनके पास पद ना हो तो व्यक्तिगत तौर पर इनकी पहचान और योग्यता क्या है? इनमें से शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा ,जिसने राजनीति में आकर सम्पत्ति इकठ्ठा ना की हो ,त्याग करने की तो इनसे उम्मीद ही करना व्यर्थ है। जहॉ तक देश को नेतृत्व देने की बात है तो एक आम नौकरशाह से भी कम इनकी समझदारी है। सरकारी खर्च में कटौती के नाम पर लोगों की जरूरतों को समाप्त करना। नौकरियों पर रोक लगाना और टैक्स वसूली के नाम पर हर रोज नये टैक्स लगाना यह काम एक मंदबुद्धि आदमी भी कर सकता है। विकास के नाम पर विदेशी कम्पनियों को ठेका देना सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों में बाहर की कम्पनियों को हिस्सेदार बनाना कोई बडा काम नहीं है।हमारे दुखों का कोई अंत दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन जो लोग दवा के नाम पर देश को जहर दे रहे है। उस पर तो बात होनी ही चाहिए। ऐसा ना हो कि ऐसे ही कुछ लोग देश को लूट कर बदबाद कर दें और हम विचार करते ही रह जांए। भ्रष्ट न्यायाधीश,पुलिस ,कर्मचारी अधिकारी और पत्रकार सभी पर बात होती है फिर नेताओं पर बात क्यों ना हो।

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