शनिवार, 30 जुलाई 2011

अमेरिका से ही सीख लो !

अमेरिकी संसद में आर्थिक नीतियों पर गम्भीर मतभेद के कारण आजकल गतिरोध आ गया है, जिससे ससंद का कामकाज लगभग ठप्प है। ससंद का कामकाज हमारे देश में भी ठप्प होता है लेकिन इसकी तस्वीर वैसी नहीं होती है जैसी अमेरिकी ससंद ने पेश की है। हमारे यहॉ हो-हल्ला, गाली गलौज,धक्का-मुक्की, बदतमीजी, तोडफोड,नोटों की गड्डी उछालने से लेकर हर वो हथकंडा सांसदों द्वारा अपनाया जाता है जिसमें बहस ही नहीं होती है बाकी सब कुछ होता है। इसके कारण देश को भी शर्मशार होना पडता है।ताज्जुब की बात यह है कि अक्सर इनकी बहस में कोई गम्भीरता होती ही नहीं है। हमारे यहॉ सरकार और विपक्षी दलों के बीच आर्थिक नीतियों में कोई बहस कभी हुई हो या इनके बीच कोई मतभेद भी हैं ,कम सेे कम आज की पीढी को तो इसकी कोई याद भी नहीं होगी ।यदि कुछ-एक को छोड भी दे ंतो आर्थिक सवालों का महत्व शायद ही किसी नेता को पता हो ,फिर इनसे उस तरह की गम्भीर बहस की उम्मीद ही कैसे की जा सकती है जैसी बहस का स्तर अमेरिकी ससंद पेश कर रही है।
अमेरिकी हमारे नेताओं की तरह मुद्दों पर नहीं उलझ रहे हैं । उनके लिए नीतियां सर्वोपरि हैं। इन्हीं नीतियों पर विश्वास के कारण वे एकदूसरे से भिन्न हैं, इस भिन्नता के लिए उनके अपने तर्क है, विश्वास हैं और आधार भी हैं। यह हमारे यहॉ बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता हमारा कोई नेता सुबह इस पार्टी के दरबार में सजदा कर रहा है तो शाम को दूसरी पार्टी के दरबार में नजर आता है। और चुनाव में तीसरी पार्टी से टिकट लेकर जनता से वोट मांगने आ जाता है।ये लोग किस तरह आर्थिक नीतियों को समझेगें और उसके लिए आखिरी दम तक लडेंगे इसकी कोई उम्मीद ही नहीं है। ये सिर्फ अपनी गद्दी बचाने और घोटालों को छुपाने के लिए मारामारी कर सकते है। देश की उस तरह चिंता नहीं करते जैसे कि मिशाल अमेरिकी पेश कर रहे हैं।

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