शनिवार, 30 जुलाई 2011

दीन-हीन दिनाकरन का धर्म!

सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीनाकरन को भ्रष्ठाचार के आरोपों से चारों ओर से घिर चुकने के बाद बचने का कोई रास्ता नहीं था। बचाव से यह मतलब नहीं कि उन्हें तुरन्त ही कोई जेल भेजा जा रहा था अथवा उनकी विवादित सम्पत्ति जब्त होने वाली थी ।उनकी अभिप्सा केवल पद पर बने रहने की थी और इस लालच ने उन्हें इतना पतित कर दिया कि अन्त में वे बचाव अथवा अपनी सफाई के बदले समाज को आतंकित करने में उतर आये। उन्होने कहा है कि मेरे साथ अन्याय हुआ है क्योंकि में अल्पसंख्यक इसाई समुदाय से हूॅ । बहुत से लोग हैं जो अपने को बचाने की खातिर अन्त में उस धर्म की दुहाई देते हे। जिससे उनका कभी परिचय ही नहीं होता है। यदि समय रहते वे धर्म को समझ लेते तो उन्हें यह दिन देखना ही क्यों पडता? बहुत से क्रिकेट खिलाडी,फिल्मी अभिनेता, नेता, पत्रकार और अब न्यायाधीश वर्ग के लोग हैं जो समय-समय पर इस प्रकार धर्म की दुहाई देते रहते हैं। यह भी दिलचस्प पहलू है कि जो भी अपने स्वार्थ के लिए धर्म की दुहाई देता है वह निश्चित ही पापी होता है। धार्मिक कार्ड खेलने वालों को अतीत में फायदा भी हुआ है। वे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत बडे ही प्रतिष्ठित पदों तक पहुॅचे है। ऐसे लोगों ने अपने लिए अलग देश तक बना लिए और राष्ट्राध्यक्ष बन गये। लेकिन काठ की हंडिया बार-बार चूल्हे में नही चढती। इस दॉव को कौन कितनी मक्कारी से खेलना चाहता है यह दूसरी बात है। लेकिन यह दॉव अब चल नहीं सकता क्योंकि लोगों की समझ में यह बात आती जा रही है कि धर्म इनके जीवन में है ही नही ंतो फिर ये अपनी मुसीबत के समय उसकी दुहाई कैसे दे सकते हैं? दीनाकरन कभी ईसाई रहे होते तो वे भ्रष्ट कैसे हो जाते? और यह परिस्थिति ही क्यों आती? बेईमान लोग ईमान की दुहाई दंे ंतो जरूर कोई गडबड होती है।धर्म मेरा या तुम्हारा कैसे हो सकता है । मैं धर्म जैसा हो पाया या नहीं यह हर व्यक्ति के लिए एक चूनौति है।धर्म पर किसी की भी मिल्कियत कैसे हो सकती है। कोई इतना उपर उठ जाए कि हर धर्म कहे यह मेरी ही संतान है। एसा व्यक्ति ही धार्मिक है। दीनाकरन घटिया राजनीति करने लगे हैं। हे प्रभु! दीनाकरन को माफ मत करना क्योंकि ये अच्छी तरह जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं।

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