सोमवार, 1 अगस्त 2011

धर्म फिर प्रकट हुआ ।

अमीना बहरामी अब एक ईरानी महिला का नाम भर नहीं रह गया है।बल्कि अपने चेहरे को तेजाब से झुलसा देने वाले व्यक्ति को माफ कर अमीना ने ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है, कि लोग चकित हो गये है। अमीना ने मुसलमान होने का दावा उस तरह नहीं किया ,जिस तरह हमारे यहॉ बात-बात पर लोग धर्म का हवाला देकर राजनीति कर लेते हैं और फायदा उठा लेते हैं । वे इस बात का रोना ,रोते हैं कि हमने धर्म के नाम इतना या इतना घाटा उठाया है।इसलिए पिछड गये हैं क्योंकि हम इस्लाम को मानते हैं। हकीकत ये है कि ये इस्लाम को जानते तक नहीं है। अमीना ने शरिया के मुताबिक अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ एक बहसी को ऑखें बख्श दी बल्कि कहा कि यह मैंने अपने देश की खातिर किया क्योंकि सारी दुनियां की निगाह हम पर थी कि हम क्या कदम उठाते हैं। बदला लेना मेरा मकसद नहीं मैं सिर्फ चाहती थी कि ये सजा सुनाई जाए लेकिन मैं इसे कभी लागू नहीं करती ।उसकी ऑखें छीनने की मंशा मेरी कभी न थी। ऐसा देश प्रेम! इतना मानवीय गुणों से भरा हृदय! और धर्म की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति !लगता ही नहीं है कि कुरान को पढकर यह काम किया जा सकता है। लगता है कि कुरान ही अमीना बहरामी के हृदय से प्रकट हुई है, धर्म ऐसे ही प्रगट होते हैं। कुरान को ठीक से समझने का दावा करने वाले तालिबानी इसके एकदम उलट है। वे ऑख के बदले ऑख हाथ के बदले हाथ जैसी आदिम कानून व्यवस्था को लागू करते है। लेकिन अमीना ने कानून की बात नहीं की उन्होने न्याय की बात कही और कहा कि मै चाहती थी कि अपराधी सजा सुने। लेकिन मैं सजा दे नहीं सकती। यही कानून व्यवस्था और न्याय व्यवस्था का अन्तर है। यही अमीना के धर्म और तालिबान की राजनीति का अन्तर है।
गीता,कुरान,बाईबिल या गुरूग्रन्थ साहिब जब भी बोले हैं, ऐसी ही दिव्यता और महिमा प्रकट होती है। लेकिन हममें से तो अधिकतर तो धर्मग्रन्थों के केवल पाठक ही हैं । हमारे अपने अनुवाद,अर्थ ,स्वार्थ और राजनीतियां होती है। दुनियां में बहुत से लोग हिन्दु,मुसलमान या ईसाई होने का दावा करते हैं । लेकिन अमीना ने कोई दावा नहीं किया। दुनियां देख रही है कि मोहम्मद साहब की जैसी दिव्यता इस महिला में है। इसलिए इसे मुसलमान कहा जा सकता है। धर्म का इस्तेमाल बहुत से लोग करते है। लेकिन कभी कभार ही कोई धर्म का माध्यम बन पाता है।


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