शनिवार, 11 मार्च 2017

.........उसी तरह नई पार्टी की देह ग्रहण कर लेती है सत्ता ।

पॉच राज्यों में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों के बाद इनके परिणामों को लेकर लोगों की अपनी धारणायें ही नहीं बल्कि आग्रह भी टूटे कोई मायावती की तरह तिलमिलाया तो कोई मौर्या की तरह खिलखिलाया। चुनाव परिणामों की व्याख्यायें होती रहेगी, जो भी चुनावों में जीतता है विशेषज्ञ उसके पक्ष में व्याख्या कर देते और तर्क ढूॅढ निकालते हैं और जो भी हारता है लोग उसकी वजह बताने में भी बडे कुशल है। बडे से बडे सत्ता बदलाव के दौर में भी यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि सत्ता परिवर्तन से स्थानीय थाने का रूख और कार्यशैली बदल जाऐगी , अस्पताल और स्कूलों में कोई बुनियादी फर्क आ जाऐगा, बाजार में  कोई बदलाव आ जाऐगा। यादव सिंह और शराब सिंडिकेट बिल्कुल नहीं बदलते, केवल इनकी निष्ठा बदल जाती है। उत्तराखण्ड में कथित रूप से जिस शराब सिंडिकेट ने मुख्यमंत्री तक बदलवा दिया था उसके मायावती और मुलायम से भी वैसे ही रिश्ते थे जैसे कि भाजपा से रहे,  फर्क केवल इतना आता है कि गली के कुछ राजनीतिक मवालियों और सत्ता का चेहरा बदल जाता है। लोग समझते हैं कि हमने सत्ता परिवर्तन कर दिया गया है। सब अच्छी तरह जानते हैं कि कल ही हमने जिनको बुरी तरह हरा कर सत्ता से बाहर किया था वे आज वनवास से वापसी का नारा लगाते हुए अपने को राम साबित कर सकते हैं। कल को फिर ये हारेगें। यह सिलसिला पिछले सत्तर सालों से चला आ रहा है।  कोई समझे कि यह जनता का जनादेश है तो यह बात बिल्कुल गलत है, हकीकत में जनता उस गाय की तरह है  जिसे दुहने के लिए  हर राजनीतिक दल के पास नये नये कारनामे है। अब जनादेश के नाम पर गाय को पगुराने की भी अब जरूरत नहीं है सीधे मशीन से दूध निकाल लिया जाता है और गाय को पता भी नहीं चलता है कि दूध उसके बच्चे तक पहुॅचा या सॉप उसका दूध पी गये। चुनाव प्रक्रिया अब मैन्युपलेशन है जो जीत गया वह अपने को सिकन्दर साबित कर देता है,। मिडिया भी इस खेल का बडा हिस्सा है।  हमें याद रखना चाहिए कि ये सिकन्दर किसी पुरू को अपमानित नहीं करते  उसे राजा का ही दर्जा देते हैं उसे बगल में ही बिठाया जाता है। इसलिए बहुत खुश होकर सातवें आसमासन में उडने का कोई कारण नहीं है कि सब कुछ बदल जाऐगा,  समस्या हल कर ली गयी है बल्कि समस्या हर बार गहराती ही जाती है केवल रंग रोगन बदले जाने से आम लोग गफलत में आ जाते हैं।


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