शुक्रवार, 24 मार्च 2017

मोदी का सिकन्दर अभियान!

2014 में दिल्ली की सत्ता मोदी के हाथ में आने और 2017 में यू0पी0 की सत्ता आदित्यनाथ के हाथ में आने के बाद प्रगतिशीलता के मायने बदल से गये हैं। देश की दिशा और दशा को लेकर जिस तरह उत्तेजना का माहौल बनता सा दिख रहा है वह किसी की भी समझ से परे है। अयोध्या विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह टिप्पणी की और सुझाव दिये हैं उससे भी इस नई प्रगतिशीलता को जैसे पंख लग गये हैं। रोमियो अभियान और बूचडखाने लगातार चर्चा में बने हुए हैं, विपक्ष हताश, निराश और पस्त ही नहीं है बल्कि परिदृश्य से गायब ही हो गया लगता है, ऐसे में आने वाला दौर हमारे सामने कई सवाल खडे करता है जिनका जवाब हमें देना ही होगा। राष्ट्रवाद और संस्कृति की जिस तरह व्याख्यायें की जा रही है हमें समझना होगा कि ये व्याख्या हमारे राष्ट्र और संस्कृति के कितना करीब हैं। और जो लोग राष्ट्र और संस्कृति की झंडाबरदारी करने में लगे हैं ये कौन है? कुछ धूर्त और मक्कार लोग अपनी राजनीतिक महत्वाकाक्षांओं की पूर्ती के लिए यदि मनगढंत व्याख्यायें कर रहे हैं तो हमें इनकी नीयत और पाखंण्ड को बेनकाब करना होगां। अटल बिहार बाजपेई ने सत्ता में आने के लिए जिस तरह गठबन्धन राजनीति का व्यापक और अवसरवादी प्रयोग किया उससे आज की राजनीति का सामाजिक और राजनीतिक आधार समझ में आता है। कहा जा सकता है कि सत्ता के लोभ में पूरे देश के अपराधियों, जातिवादियों, क्षेत्रवादियों को एक बडा गठबन्धन सक्रिय है इसे इस देश से कुछ लेना देना नहीं है। यह आक्रामक अभियान पूरे देश का जीत लेना चाहता है जैसे सिकन्दर पूरे विश्व को जीतने निकला था उसकी जीत में कोई लोकप्रियता का पैमाना नहीं थी बल्कि आका्रमकता और हिंसा ही उसका तर्क और हथियार थी। मोदी ने इसी तर्क के सहारे कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया है लेकिन कांग्रेस मुक्ति के बाद क्या होगा इसके बारे में मोदी कुछ नहीं कहते, उन्हीं  कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करते मोदी से ना तो कोई सवाल पूछता है और ना ही मोदी को जरा भी शर्म महसूस होती है। यू0पी चुनाव अभियान में मोदी ने कहा था कि यू0पी0 कैबिनेट की पहली बैठक में किसानों के कर्ज माफ किये जाऐगंे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और ना ही उसकी कोई उम्मीद है बल्कि वित्त मंत्री जेटली ने खुले तौर पर कह दिया है कि केन्द्र इस तरह को कोई निर्णय नहीं करेगा। फिर मोदी ने यह वायदा किस हैसियत से किया कोई नहीं पूछ रहा है। यू0पी0  बूचडखानों और रोमियो अभियान के उन्माद में डूबा है आदित्यनाथ और मोदी अब 2019 के चुनावी मोड में आ गये हैं फिलहाल मोदी ने  गुजरात और राजस्थान के सांसदो से ताकीद की है कि वे आने वाले विधान सभा चुनावों के लिए मुस्तैद रहें। सवाल यह है कि मोदी जीत हासिल करके क्या हासिल करना चाहते हैं क्या इतना काफी नहीं है कि वे अपनी रचनात्मकता दिखायें ताकी लोग  उन्हें पंसद करें औरअपना समर्थन दें, लेकिन वे जीत दर जीत किसलिए चाहते हैं इसका कोई जवाब वे नहीं देते हैं। अति किसी भी बात की बुरी ही होती है चाहे वह जीत ही क्यों ना हो।



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