शुक्रवार, 11 मार्च 2011

दण्ड पर ही कितना भरोसा किया जा सकता है!




उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में 10 लोगों को जिंदा जला दिया गया है। इस बात से लोग बहुत सदमें में है।क्योंकि जलाने वाले अपराधी या जलने वाले लोगों के बीच कोई पेंच नहीं बन पा रहा है। इनमें कोई अल्पसंख्यक  और बहुसंख्यक का भेद नहीं ढूंढा जा सकता है दलित या सवर्ण का मामला नहीं बन रहा है। नारी उत्पीडन की कोई बात इसमें दिखाई नहीं देती है। दूसरे राज्यों से आये लोगों के उत्पीडन की इसमें कोई बात नहीं बनाई जा सकती है। बधुॅवा मजदूर, बाल उत्पीडन, वरिष्ठ नागरिकों जैसे मसलों से इस घटना का किसी भी तरह जोड नहीं बन पा रहा है। इसलिए ये हत्यायें इनके लिए बेमजा हो गयी है।जाहिर है कि हत्याओं या उत्पीडन की इनको कोई चिंता कभी होती ही नहीं है। 10 लोगों की हत्यायें हो गयी और पुलिस इस बात का आश्वासन दे रही है कि हत्यारों को शीघ्र ही पकड कर दण्ड दिलवाया जाऐगा। यही राजनीतिक दल,समाज,तमाम धर्माधिकारी और अदालतें भी कहती है। लेकिन यह बात किसी के भी गले नहीं उतर सकती है कि इनको जो भी कठोर दण्ड दे दिया जाए उससे इस बात का क्या लेना-देना है कि यह घटना क्यों हुई?्र और भविष्य में यह न हो इसके लिए क्या उपाय किये जा रहे है। व्यवस्था में जब भी कोई चूक होती है तो एक जॉच आयोग गठित कर दिया जाता है ताकि भविष्य में इस या उस तरह की कोई गलती न हो। उसकी निष्कर्षों पर बाकायदा बहस और कार्यवाही इत्यादि होती है। यह अलग बात है कि इन रिपोर्टों पर अमल इस तरह होता है कि भविष्य में व्यवस्था की चूक उजागर न हो पाये।
 सवाल यह नहीं है कि वास्तविक गुनाहगार पकडे गये अथवा नहीं उनको दण्ड कठोर दिया जाऐगा या नहीं। यदि इस गुनहगारों को दण्ड दे भी दिया गया तो अगली बार जो भी इस तरह किसी को जीवित जलाऐगा वह इतनी सावधानी जरूर बरतेगा कि पकड में न आये। अपराध फिर भी होते ही रहेगें।लेकिन यह चिंता किसी को नहीं है कि जिस समाज में इस तरह के  अपराधी पैदा हो रहे हैं ,उसके मूल में क्या गडबड है। अपराधियों को दण्ड देने का आश्वासन बडा धोखा है। इससे किसी को कुछ नहीं मिलता है। हमें ऐसा समाज और व्यवस्था चाहिए ,जो इस बात का भरोसा दे कि ऐसे लोग क्यों पैदा हो रहे हैं इसके क्या कारण हैं? और यह भविष्य में यह न हो इसके लिए क्या उपाय किये जा रहे है।


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