शुक्रवार, 11 मार्च 2011

आत्म पीडा से आंदोलन


इरोम शर्मीला की हालत को लेकर हमारी सरकार शर्मिंदगी महसूस कर रही है यह बात बी0बी0सी0 से बात करते हुए सरकार की ओर से कही गयी है। लेकिन सरकार को यह शर्मिंदगी कब से होने लगी है ?यह नहीं बताया गया है। वर्षों से इरोम की हालत मिजोरम की परिस्थिति का प्रतीक बन चुकी है। लेकिन इरोम और सरकार अपनी-अपनी जगह कायम हैं ,यह क्षोभ पैदा करने वाली बात है कि इस देश में सरकार और नागरिकों के बीच इतनी संवाहीनता, है,यह न सिर्फ हताशा पैदा करने वाली बात है बल्कि इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों और कथित जनप्रतिनिधियों को अदालत में खडा किया जाना चाहिए जो कि प्रत्यक्ष रूप से इसके लिए जिम्मेदार है। केवल शर्मिंदगी व्यक्त करना इस मुद्दे पर बेहयायी है।
  ल्ेकिन इरोम जो कुछ कर रही है। वह भी प्रशंसा के योग्य नहीं है। यदि इरोम को कोई इस परिस्थिति में रखता तो वह व्यक्ति या वह समूह न सिर्फ वह दण्ड का भागीदार होता बल्कि समाज में घृणा का पात्र बनता । चूंकि यह काम खुद अपने साथ इरोमा कर रही हैं तो इससे उनके आंदोलन को सम्मान या कोई भी समर्थन कैसे मिल जाऐगा ?मनुष्य का अपमान, दूसरे करें या वह खुद को पीडित करें अन्ततः इंसान ेी नीडा का प्रदर्शन हो रहा है।और इस स्तर पर राजनीतिक लडाई लडना न तो सम्माननीय है, और न ही अनुकरणीय है।आत्महत्या का प्रयास करने पर मुकदमा चलाया जाता है और उसे मनुष्य की गरिमा को लांछित करने के लिए दण्ड देने का प्रावधान भी है। कुछ लोग इसे सत्याग्रह से जोडते है यह नासमझी कर पराकाष्ठा है। जिसे आप आततायी मानते है उससे सत्य का आग्रह कैसे कर सकते है। वह यदि सत्य को समझ ही लेता तो आततायी कैसे बन पाता? और फिर सत्य के लिए आग्रह(जिद) आप कर रहे हैं तो इसका साफ मतलब है कि आपको भी सत्य का कुछ भी अता पता नहीं है। सत्य किसी से संवाद ही नहीं करता है यदि वह प्रकट है तो अत्याचारी उसी तरह असहाय हो जाता है जिस तरह प्रकाश होने पर अंधेरे के लिए कोई विकल्प नहीं बचता है। शुस्आत में यह मानवीय सरोकारों से जुडा शर्मीला इरोमा का आर्तनाद था लेकिन समय बीतने के सा ही यह राजनीतिक होता जा रहा है। यह दोनों तरफ से एक जिद का मसला बन गया है। इरोम यदि अर्म्स एक्ट के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार मानती है तो वे क्यों उन्हीं के सामने अपनी हालत को दयनीय बनाकर रहम की उम्मीद कर रही हैं। सरकार तो अपने गर्व में रहती है कम से कम हम तो आपसे उम्मीद और अपील ही कर सकते है कि अब बहुत हो चुका कम से कम पीडा को हथियार मत बनाओ। प्रताडना असहनीय है इससे कोई अन्तर नहीं होता है कि इसे आप स्वयं के साथ कर रही हैं। मानवीय गरिमा की रक्षा आत्मपीडक बनकर बनकर नहीं की जा सकती है। आर्म्स एक्ट की प्रताडना अपराध और आपकी प्रताडना आंदोलन नहीं हो सकेगा। आपकी बात सही हो सकती है लेकिन इस तरीके को समर्थन कैसे हासिल होगा?

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