बुधवार, 3 अगस्त 2011

संसद पर नहीं लेकिन इन पर तो सवाल है ही।

आजकल कुछ लोग ससंद की सर्वोच्चता का बखान करते थक नहीं रहे हैं,हांलाकि इस बात का कोई प्रसंग नहीं होता है। फिर भी बिना बात, ससंद की दुहाई देने से यह मतलब नहीं है कि भारतीय संसद की सर्वोच्चता कहीं से भी संदिग्ध हो गयी है, या कोई संसद को कमतर दिखाने कोशिश कर रहा है। वास्तव में संसद की महिमागान के पीछे इनका अपना स्वार्थ है, हकीकत में जब ये नेता कहीं फॅसते नजर आते है,तो संसद की सर्वोच्चता की दुहाई देने लगते हैं। अप्रत्यक्ष रूप में इन्हें खुद के सर्वोच्च होने का एहसास लोगों को कराना होता है, इसलिए संसद के नाम का सहारा ले रहे हैं आज एक बेईमान ,भ्रष्ट,माफिया, अपराधी और हिंसक प्रकृति का व्यक्ति नेता के रूप में संसद भवन तक आसानी से पहुॅच सकता है, इसके लिए ये लोग बिल्कुल चिंतित नहीं है।लेकिन संसद की सर्वोच्चता की इन्हें बहुत चिंता है ,संसद जनमानस का वास्तविक प्रतिनिधि बना रहे प्रतीक है तो उसे अलग से अपनी सर्वोच्चता की याद लोगों को दिलानी नहीं पडेगी। वह सर्वोच्च है ही ,इसमें कोई संदेह नहीं है और ना ही चिंता करने की कोई बात होनी चाहिए। लेकिन यह स्थिति खतरनाक है कि संसद की गिरती हुई गुणवत्ता पर आज कोई बात नहीं करना चाहता है। केवल उसके महत्व और शक्ति को नारे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। जो महत्वपूर्ण बना रहेगा उसे इस तरह से बयान देने की क्या जरूरत है? खतरा इस बात का भी है कि यदि गलत लोगों की संख्या संसद में बढती गयी तो फिर क्या होगा ?क्या केवल सर्वोच्चता के नाम पर इसका महत्व हम बनाये रख पायेगें? यह सवाल बहुत सी आशंकाओं को न सिर्फ जन्म दे रहा है बल्कि इससे यह खतरा भी हो सकता है कि संसद की प्रभुसत्ता के नाम पर गलत लोग अपनी सम्प्रभुता का ख्वाब न देखने लगें । एक नजर में धोखा हो सकता है कि संसद भवन और उसमें बैठने वाले सदस्य ही संसद हैं। जबकि ये तो केवल प्रतीक और जनता के प्रतिनिधि मात्र हैं, जिस सर्वोच्चता की बात होनी चाहिए उसके केन्द्र में तो जनता ही है। वही सम्प्रभु है ,संसद केवल उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम है। इस माध्यम की शुद्धता पर ही हमारा भविष्य निर्भर है। न कि इस बात पर बेवजह विवाद पैदा करने से कोई लाभ होगा कि संसद से बाहर बात करना भी गुनाह है। देश हित की बात कहीं भी और कोई भी कर सकता है। हमें लोकतंत्र के स्वरूप की बहुत चिंता नही करनी चाहिए जितनी कि इसकी आत्मा की शुद्धता पर ध्यान देने की जरूरत है। एक सांसद लोगों के विचार,भावना और विश्वास का प्रतिनिधित्व करता है इसके आभाव में उसका अपना कोई महत्व नहीं है। केवल चुनाव जीतने को ही लोगों के विचार,भावना और विश्वास का प्रतीक मानना अब संदिग्ध होता जा रहा है। क्योंकि आज चुनाव जीतना बहुत सी गलत बातों पर भी निर्भर होता जा रहा है। इसी कारण गलत लोग चुने भी जा रहे हैं। और बडी संख्या में जेल भेजे जा रहे हैं। इसे यहीं पर रोकना होगा । ऐसे सदस्यों को एकतरफ से जेल भेजा जाता रहे और दूसरी ओर इनकी उपस्थिति वाली सभा को संसद का मान भी मिलता रहे यह विरोधाभास बहुत सी समस्याओं का कारण बनता जा रहा है। इसे तुरन्त ठीक करने की जरूरत है, न कि बेवजह संसद की महत्ता के बारे में संदेह फैलाने की। संसद को उन खतरनाक लोगों से बचाने की जरूरत है जो संसद के रास्ते जेलों तक जा रहे हैं, और इनकी संख्या लगातार बढती ही जा रही है।

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