गुरुवार, 4 अगस्त 2011

नौकरियों पर ग्रहण और जमीन पर भूमि अधिग्रहण।

किसानों की खेती योग्य भूमि पूॅजीपतियों द्वारा ली जा सकती है अथवा नहीं यह बहस अब दुखान्त की ओर है। इस महत्वपूर्ण तथ्य को गोलमोल कर दिया गया है कि जिसे किसानों की भूमि कहा जा रहा है वह इस देश के कृषि प्रधान ढांचे का आधार भी है।इस आधार को तोडने का क्या मकसद है, यह स्पष्ट नहीं है। इस देश में कोई चमत्कारिक नई औधौगिक क्रान्ति तो हुई नहीं है जिसके लिए किसानों से जमीन खाली करवा कर खुर्द-बुर्द कर दी जाए। फिर यह सवाल केवल किसानों तक ही सीमित नहीं है हमारी पूरी अर्थव्यवस्था आज भी कृषि पर ही आधारित है। बुनियाद को उखाड कर कौन सा नया निर्माण किया जा रहा है ?यह कोई बताने वाला नहीं है। राष्ट्रहित में जमीन का इस्तेमाल करना कोई गलत काम नहीं है लेकिन इस आधार पर पूॅजीपतियों के हित में पूरा सरकारी अमला जुट जाए तो यह सवाल किसी को भी परेशान कर देता है कि सरकार पर अब भरोसा किया जाना चाहिए अथवा नहीं। किसी राष्ट्रीय परियोजना के लिए जमीन खाली करना किसी के लिए भी गौरव की बात है लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण यह भी है कि जमीन देने का आह्वाहन कौन कर रहा है उसका लोगों के दिलों में कितना सम्मान है।उसकी बात में कितना दम है और कितना असर है।आखिर लालबहादुर शास्त्री जी के आह्वाहन पर महिलाओं ने अपने आभूषण निछावर नहीं किये थे, लोगों ने सप्ताह में एक दिन का उपवास नहीं किया था ? आज सवाल विश्वसनीयता का है, संकट नेताओं की नीयत का है ,इन पर लोगों को भरोसा नहीं रह गया है। यह कानून की समस्या नहीं है कि भूमि अधिग्रहण कानून से कुछ हल निकल आयेगा। जो नहीं होना चाहिए था वह किया जा चुका है। किसानों की जमीन बाजार में नहीं बिक सकती है यह मिथ था जो कि टूट चुका है। हमारे देश में किसानों की जमीन का राष्ट्रीय अस्मिता जैसा महत्व है। इसका बाजार में मोलभाव करना पूरे देश की अस्मिता को रौंद देने जैसा है।
इससे पहले हमारे देश में नागरिक सेवा के लिए जो सरकारी ढांचा था वह तोडा जा चुका है। कर्मचारियों को वी0 आर0 एस0 देकर उनकी नौकरियां इसी तरह खरीद ली गयी जैसे कि आज किसानों से जमीनें खरीदी जा रही है। ऐसा नहीं है कि इस देश के नागरिकों के लिए सरकार के ेअब कोई दायित्व नहीं रह गये हैं। लेकिन एक ऐसी अर्थव्यवस्था बिना वैकल्पिक व्यवस्था के चौपट कर दी गयी जिसमें सभी नागरिकों को सुविधायें और समाज के एक हिस्से को नौकरियों के जरिए रोजगार देने की पूर्री व्यवस्था थी यह अब तोडी जा चुकी है। इस देश के बहुत से नौजवानों के लिए नौकरियों में पूर्ण ग्रहण लग चुका है और अब किसानों के लिए भूमि अधिग्रहण कानून बनाकर देश को ना मालूम किस दिशा में ले जाया जा रहा है ?

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