बुधवार, 15 मार्च 2017

उन्माद की नियति अवसाद है, उत्साह नहीं।

बहादुर शाह जफर कितने भी काबिल होते और कितना भी जोर लगा लेते वे साम्राज्य को बनाये नहीं रख सकते थे। राहुल के रूप में हम जिस युग को परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं मोदी  भी उसमें ही आते हैं वे युगान्तरकारी नही हैं। मोदी के बारे में कोई भी बात करने से अक्सर भक्त नाराज हो जाते हैं वे मोदी की सीमा को नहीं समझते हैं उन्हें असीम समझने लगे हैं वे समझते हैं कि मोदी की आलोचना का मतलब उनकी बुराई करना, बुरा चाहना और देश के खिलाफ षडयन्त्र करना है। वे मोदी को ही देश का प्रतिरूप मानने लगे हैं,  हकीकत में अब मोदी इनके प्रतिनिधि रहे भी नहीं हैं बल्कि भक्त खुद ही मोदी के प्रतिनिधि हो गये हैं, जैसा मोदी चाहेगें ये वैसा ही सोचेगें और बोलेगें।  कुछ दिन बीतने के बाद यह स्थिति भयावह रूप में सामने आ सकती है मोदी जानते हैं कि वे जनता की उम्मीदों के प्रतिनिधि कभी नहीं रहे उन्होनें कोई सपना भी दिया तो कांग्रेस मुक्त भारत का सपनास दिया इससे उनकी राजनीतिक स्थिति बेहतर और सुरक्षित हो सकती है लेकिन जनता को इससे कोई लाभ हासिल नहीं होगा इतना तो तय ही है। जनता ने हताशा की अन्तिम स्थिति में आकर ही उन्हें चुना है  लोगों ने उन्हें श्रेष्ठ लोगों में से श्रेष्ठतम के रूप में नहीं चुना बल्कि इसलिए चुना क्योंकि बाकी सब निकम्मे और नालायक साबित हुए। अब कोई विकल्प बचा ही नहीं है मोदी चाहे कुछ भी कहें वे हारे को हरिनाम के रूप में अन्तिम  उपाय के रूप में चुने गये हैं। लोगों का इतना समर्थन उम्मीदों का बोझ भी है, रैलियों में बरसते फूल कब चुभते शूल में बदल गये पता भी नहीं चलता है। कितने नायकों को पलक झपकते खलनायक के रूप में रूखसती मिली है इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पडा है। इसलिए ज्यादा खुश होने का कोई कारण नहीं है, लोकतंत्र में कितनी ही बडी जीत मिले राज्याभिषेक की तरह जश्न मनाना अभद्र और  अशोभनीय है।  कोई पार्टी जीत कर बहुमत हासिल कर लेती है तो यह पार्टी संगठन के लिए संतोष की बात हो सकती है इसे राष्ट्रीय उपलब्धि के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता है। जनता की उम्मीदों को बोझ बनते देर नहीं लगती है, और मोदी ने तो उम्मीदों को जैसे पंख लगा दिये।  मोदी ने कहा कि तुम मुझे दिल्ली पर बिठा दो मैं सब कुछ ठीक कर दूॅगा । लोगों ने मोदी के अनुमान से कही ज्यादा  उन पर भरोसा इसलिए भी किया है क्योंकि लोग आलसी और जाहिल भी हैं वे समझते हैं कि हमारी समस्यायें कोई रॉबिनहुड आकर सुलझा दे मोदी के जादुई चिराग से हमारे खाते में पन्द्रह लाख रूपये आ जाऐं, समस्यायें इस तरह हल नहीं होती उन्हें खुद ही सुलझाना होता है। वे चाहते हैं कि सब कुछ कोई दूसरा आकर उनकी समस्यायें हल कर दे।  यह सम्भव नहीं है। सबको पता है इस जन्नत की हकीकत लेकिन खामखाह ही दिल बहलाये जा रहे हैं अब तो मोदी भी दो साल तक दिल नहीं बहलाऐगें खुद ही दिल बहलाने का बहाना भी ढूॅढना पडेगा।



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