रविवार, 19 मार्च 2017

उत्तर प्रदेश में जोगीरा सरररररर।

भारतीय राजनीति में इस समय जिन दो योगियों का जलवा है आदित्यनाथ उनमें से एक हैं। सांसद होने के बाद भी आदित्यनाथ को पूरे देश में उस तरह पहचान अब तक नहीं मिली थी जैसी कि रामदेव को काफी पहले से देश में जाना जाता है। हालांकि रामदेव की पहचान एक चतुर व्यापारी से अधिक नहीं है और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बावजूद आदित्यनाथ की छवि तपस्वी,  ऋषि-मुनी, ज्ञानी-ध्यानी से अधिक दंबग की रही है। पूर्वाचंल क्षेत्र में दबंगई को काफी हद तक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है जिस तरह हरिशंकर तिवारी को एक दबंग राजनीतिज्ञ कहा जाता था, आदित्यनाथ उसी का आध्यात्मिक तेवर कहे जा सकते हैं। दबंग कोई गुंडा हो तो उससे अधिक प्रतिष्ठा राजनीतिज्ञ दबंग की होती है और राजनीतिज्ञ दंबग से अधिक प्रतिष्ठा आध्यात्मिकता का पुट लिए दबंगई की होती है इसका अपना ही ग्लैमर है। इसीलिए तमाम धर्मगुरूओं और मौलवियों का इतना आकर्षण है। मोदी ने इस ग्लैमर का इस्तेमाल करने की कोशिश की है, सभी जानते हैं कि नोटबंदी के बाद जिस तरह अराजकता की स्थिति हो गयी थी तब अरूण जेटली का बयान आया कि पन्द्रह बीस दिनों में स्थिति सामान्य हो जाऐगी लेकिन  स्थिति यथावत ही रही लोगों को अच्छी तरह याद है कि लगभग बदहवास हालत में मोदी ने एक सभा में कहा कि वे मुझे मार डालेगें, मेरा क्या मैं तो एक फकीर हूॅ झोला लेकर चल दूॅगा लेकिन गरीबो की लडाई मैं लडते रहूॅगा। अंधेरे में चलाया उनका यह तीर लोगों के मर्म को भेद गया और  स्थिति मोदी के खिलाफ होने से बच गयी। आज मोदी ने एक ऐसे ही फकीर पर दॉव खेला है जो काफी पहले झोला लेकर घर से निकल गया था। आदित्यनाथ पर दॉव खेलना अब मोदी का अन्तिम विकल्प  है। स्टार्ट अप से लेकर स्वच्छ भारत, मेक इंन इंडिया से शौचालय अभियान तक मोदी के जुमले चलते रहे लेकिन नोटबंदी  से हुए असर के बाद मोदी के हाथ-पॉव फूल गये हैं। वे चाहते हैं कि महंत, बाबा और मन्दिर की ओर चला जाए। आदित्यनाथ तो महज इसकी शुरूआत हैं। सैल्फी वाले बाबा को आभाष हो गया है कि आधुनिकता के चक्कर में वे अपनी जमीन भी खो सकते है। इसलिए ”उड जहाज को पंछी फिर जहाज पर आवै“।

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