शुक्रवार, 31 मार्च 2017

खाज को खुजलाने की राजनीति आखिर लहूलुहान ही करती है।

चाहे कोई सहमत हो या ना हो मोदी परिघटना और उसके बाद केजरीवाल फैक्टर का एक सकारात्मक पक्ष यह है कि अब भारतीय चुनावी राजनीति में गठबंधन की मजबूरी को विदा कर दिया है। हालिया पॉच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी गठबन्धन जिस तरह पराजित हुआ है उसने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में भाजपा और पंजाब में कांग्रेस को छप्पर फाड समर्थन दिया है। किसी भी पार्टी के पास अब ऐसा कोई बहाना नहीं रह गया है कि उन्हें विपरीत विचारधारा से नीतियों सम्बन्धी कोई समझौता करना पड रहा हो। हर किसी के पास स्पष्ट बहुमत है। चाहे गोवा और मणिपुर में गठबंधन की सरकार ही हो वहॉ डील इतनी गहरी हुई कि इनके लिए अब उस तरह का कोई बहाना बनाना  सम्भव नहीं है। जनता की ओर से चाहे इन्हें स्पष्ट बहुमत ना भी मिला हो लेकिन भीतरखाने गतिविधियों के बाद खण्डित जनादेश को भी स्पष्ट बहुमत में बदल दिया गया है। अब सभी विचारधारायें अपने ढंग से काम करने को स्वतंत्र है। यू0पी0 में कथित तौर पर काम शुरू हो भी चुका है, हांलाकी आदित्यनाथ उस तरह की मोहलत नहीं मांग रहे हैं जैसे कि मोदी ने हनीमून की मोहलत मांगी थी। मोदी की राजनीति का कैनवास काफी बडा था, कभी उन्होनें अपने शपथ ग्रहण समारोह को ही चक्रवर्ती सम्राट के राज्याभिषेक की तरह आयोजित करवा कर सुर्खियां बटोरी तो उसके बाद अचानक पाकिस्तान हो आये, फिर विश्व भ्रमण पर निकल गये, कभी सर्जिकल स्ट्राईक और कभी नोटबंदी करते-करते इनके कार्यकाल का दो तिहाई समय बीतने को है। उपलब्धि के नाम पर यू0पी0 चुनाव परिणाम के अलावा और कुछ नहीं है। बहुत से राज्यों में जीते हैं तो बहुत से राज्यों में अपमानजनक तरीके से पराजित भी हुए है। बाकी जगह पर तोड-फोड और खरीद फरोख्त का फार्मूला पूरी बेशर्मी से लागू किया गया है। यू0पी0 की शुरूआत अपने आप में काफी कुछ कह जाती है। राममन्दिर, तीन तलाक, बूचडखाने और दूसरे तमाम मुद्दे जिस तरह उठाये जा रहे हैं उससे साबित होता है कि जिन वायदों पर ये आये थे उनसे अब ये मुॅह मोड चुके हैं। अच्छे दिन से लेकर कालाधन तक हर जुमला अब इनके लिए दुःस्वप्न बनता जा रहा है। हर कोई अच्छी तरह समझता है कि इनकी नीयत खराब है। इन्होनें मन्दिर विवाद खडा किया तो उसके पीछे मकसद मन्दिर बनाना नहीं था बल्कि विवाद पैदा करना था। इसी तरह तीन तलाक को लेकर जो चिंता इनमें दिखाई देती है वह भी चिढाने से ज्यादा कुछ नहीं है। क्या हिन्दू समाज में वैवाहिक विघटन नहीं होते हैं? क्या हिन्दू समाज की महिलाओं की समस्यायें हल की जा चुकी हैं महिला का मतलब युवा महिलायें ही कतई नहीं होती हैं इन्हें लव जिहाद के नाम पर युवा लडकियों की चिंता है तलाक के नाम पर युवा महिलाओं की चिंता है आखिर माजरा क्या है? ये युवा महिलाओं को लेकर काफी संवेदनशील है।  क्या बच्चियों की शिक्षा के बारे में  इन्हें कोई सरोकार नहीं है अथवा उम्रदराज महिलाओं के बारे में इनके पास कोई कार्यक्रम क्यों नहीं है। महिलाओं की चिंता केवल विवाह तक ही सिमित नहीं की जानी चाहिए, यह काफी गम्भीर मुद्दा है तीन तलाक से अधिक चिंता इस बात की की जानी चाहिए कि मन्दिर से लेकर तलाक बूचडखाने से लेकर लवजिहाद और समान नागरिक कानून तक कोई भी बात बिना राजनीति के क्यों नही की जाती है?


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