सोमवार, 27 मार्च 2017

योगी से पिछड रहे हैं मोदी।

       एक ही राजनीति में भी व्यक्तित्वों का अपना असर होता है, भाजपा के विस्तार में अटल बिहारी वाजपेई से कहीं ज्यादा योगदान के बावजूद लोगों ने लालकृष्ण आडवानी को पंसद नहीं किया तो इसके पीछे कुछ निश्चित कारण रहे थे। उत्तरप्रदेश में आदित्यनाथ योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से फिर यही चर्चा जोर पकडने लगी है कि क्याा भाजपा की राजनीति के लिए मोदी का विकल्प योगी के रूप में आ गया है? दबे स्वर में ही सही यह चर्चा जोर पकडने लगी है कि 2024 के चुनावों में मोदी की जगह योगी कहीं बेहतर उम्मीदवार हो सकते हैं। सवाल पूछा जाने लगा है कि मोदी का आकर्षण इतना सतही क्यों साबित हो गया कि एक प्रदेश के मुख्यमंत्री के 10 दिन के कार्यकाल में ही  वह कुम्हलाने सा लगा है। कहा जा रहा है कि योगी के व्यक्तित्व में चाहे समझदारी ना हो लेकिन एक प्रकार की ईमानदारी है, वे जब मुसलमानों के प्रति कोई बात करते हैं तो वे उस तरह की नफरत से नहीं भरते जैसे कि मोदी ने टोपी लौटाते हुए नफरत जाहिर की थी, उनके चेहरे का वह भाव किसी को लुभा भी सकता है लेकिन एक नेता के तौर पर उसे अभद्रता ही माना गया। योगी के व्यक्तित्व में भगवा कपडेे पहनने के बाद भी एक प्रकार का आत्मविश्वास दिखता है जो किसी को दस लाख के सूट पहनने के बाद भी हासिल नहीं हो पाता है। योगी के सर्टिफिकेट फर्जी नहीं हैं ना ही उन्होने पढे लिखे होने का दावा किया। वे नाटकबाज भी नहीं हैं चाहे गलत तरीके से ही सोचते और बोलते हैं लेकिन उनके यहॉ सभी समुदाय के लोग पूरे विश्वास से हैं उन्हें समाज से कटा हुआ साबित नहीं किया जा सकता है। कुल मिलाकर यदि योगी के आने से ही मोदी की चमक फीकी पडेगी तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि एक सी राजनीति में होने के बाद भी योगी के सामने मोदी कमजोर ही साबित होगें।  इससे ही पता चलता है कि यदि विपक्ष खुद ही खस्ताहाल ना हुआ होता तो मोदी का तिलिस्म कब का बिखर चुका होता। यह जादू मोदी का कम और विकल्पहीनता का ज्यादा है।

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