शनिवार, 15 अप्रैल 2017

देश को मांमू बना रहे हैं!

पिछले कुछ दिनों से कश्मीर से जिस तरह के विडियों की बाढ सी आ गयी है उससे सवाल उठने लगा है कि कि मोदी की कश्मीर नीति आखिर है क्या? गौरक्षक अभियान और एप्टी रोमियों अभियान की तरह कश्मीर की सडकों पर सडकों पर आतंकवादी के समर्थक खुलेआम सुरक्षाबलांे के साथ बदतमीजियां कर रहे हैं ताकी किसी तरह उनका धैर्य टूटे, कोई बडी दुर्घटना हो और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह बहस का मुद्दा बने। दूसरी ओर जिस तरह सुरक्षा बलों ने एक पत्थरबाज को  जीप से बॉध कर घुमाया उसकी भी सराहना नहीं की जा सकती है हांलाकि मोदी भक्त इससे बडा धन्य महसूस कर रहे हैं लेकिन एक प्रतिष्ठित सैन्य बल का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष को अधिक गम्भीरता की जरूरत है। यदि केवल इतने से ही पत्थरबाजी रूक जाती तो यह काम काफी पहले ही किया जा चुका होता। इसी तरह कुलभूषण मामले में जिस तरह पाकिस्तान ने भारत का ललकारा है उससे मोदी खेमा ही नहीं वह तो बेशर्म है ही, लेकिन पूरा देश सकते में है कि आखिर मोदी कर क्या रहे हैं? केजरीवाल की तरह कोई गैरजिम्मेदार आदमी विधानसभा चुनाव जीत कर सरकार बना ले तो बहुत खतरा नहीं है यह देश के अन्दर का मामला है। उनकी 16000 रूपये की भोजन थाली का भुगतान यह देश सहन कर लेगा, इतना नुकसान बर्दाश्त किया भी जा सकता है लेकिन देश की सत्ता के केन्द्र दिल्ली में कोई आदमी केवल नौटंकीबाजी के दम पर सत्ता में आ जाए और अपनी बेवकूफियों, भक्तों के जयजयकारों, रैलियों  के उन्माद, आत्ममुग्धता और विपक्ष के सन्निपात की दशा में वह देश को तबाह कर दे तो  बचाव का कोई रास्ता नहीं है।  हमें केजरीवालों और मोदियों की राजनीति की कीमत अब चुकानी ही पडेगी केजरीवाल की कीमत हम चुका सकते हैं लेकिन मोदी की राजनीतिक कीमत यह देश कैसे चुका सकेगा यह चिंता लगातार बढती ही जा रही है। केजरीवाल ने भी कहा कि मैं सब ठीक कर दूॅगा लेकिन हमारे पास उन्हें ठीक करने का मौका था और दो साल के अन्दर ही उन्हें उनकी राजनीतिक हैसियत बता दी गयी, लेकिन मोदी के मामले में अभी उन्माद इसलिए थमता नही दिखाई पड रहा है क्योंकि कोई पहलकदमी को तैयार नहीं हैं। सोमनाथ मन्दिर के पंडों की तरह उनके भक्त अब भी मोदी की जयजयकार में डूबे हैं और लोगों को भरोसा दिला रहे हैं कि मोदी आज ये कर देगें और कल को वो कर देगंे लेकिन हालात दिन ब दिन खराब होते जा रहे हैं। हम जानते हैं कि यही भाजपा कंधार में देश के दुश्मनों को बाकायदा इज्जत के साथ छोडकर आई थी और तब मोदी ने विरोध में भाजपा से इस्तीफा नहीं दिया था मोदी हों या बाजपेई इनकी सोच, कार्यशैली और सीमा इससे ज्यादा नहीं है। अब यह सन्देश देने की कोशिश की जा रही है कि मोदी से सवाल पूछने का मतलब देशद्रोह है!  मोदी की जिम्मेदारी लता मंगेशकर और अन्ना जैसे तमाम लोगों ने ली थी। केजरीवाल के बारे में तो अन्ना मॉफी मांग चुके हैं कि वह गलती थी। लेकिन लगता है कि मोदी के मामले में मांफी मांगने में अन्ना अब भी हिचक रहे हैं जबकि सारा तमाशा उजागर हो चुका है बाद में तो मांगी मांगने का भी वक्त नहीं बचेगा अन्ना साहब। ये सब लोग मिलकर देश को खुलेआम ‘मामू‘ बना रहे हैं।

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