शनिवार, 15 अप्रैल 2017

आतंकवाद को राजनीतिक समस्या कैसे कहा जा सकता है?

इसे उनकी शोहरत कहें या रूसवाई लेकिन जुमलेबाजी का कहीं भी जिक्र हो तो लोग मोदी की ओर ही इशारा समझते हैं, अमित साह ने बाकायदा यह कहकर इस धारणा को मोदी जी के साथ चस्पा कर दिया कि मोदी जी का यह कहना चुनावी रणनीति में चलता रहता है और इसमें मोदी जी का इस तरह का जुमला फेंकना सही था। जो आदमी इसके बावजूद चुनाव जीतते जा रहा हो जाहिर ही है कि वह इसे अपनी अदा माने बैठा है और यह मानकर चल रहा है कि लोग उसकी इस अदा पर फिदा हैं। लोगों का किसी पर फिदा होना उसकी प्रमाणिकता साबित नहीं कर सकता है। लोग अभिनेताओं-अभिनेत्रियों से लेकर  बुरे आदमियों की अदाओं पर भी फिदा होते रहते हैं , राजा भैय्या, मुख्तार अंसारी, , अतीक अहमद, शहाबुद्दीन से लेकर आशाराम और रामदेव पर भी लोग फिदा हैं। सबके अपने अपने तर्क हैं कोई किसी दूसरे को सहमत नहीं कर सकता है। इसी तरह मोदी जी के भी अपने भक्त हैं। लेकिन जुमलेबाजी को लेकर बडे मामले हल नहीं किये जा सकते हैं और इस तरह के खतरे सामने आने लगे हैं, कश्मीर इसका एक छोटा सा  उदाहरण है। पहले मोदी ने पी0डी0पी0 को आतंकवादियों की पार्टी कहा और फिर उसी से गठबन्धन कर लिया, साथ ही साथ पाकिस्तान में आतंकवादियों से मिलने अपने प्रतिनिधि वैदिक को भेज दिया और खुद बिन बुलाये पाकिस्तान चले गये और भी इसी तरह की तमाम उटपटांग हरकतें की इसका खामियाजा अब कश्मीर में दिखाई पडने लगा है। वैंकय्या नायडू अब कहने लगे हैं कि कश्मीर समस्या कांग्रेस की देन है और पटेल को पूरी छूट नहीं दी गयी। पहली बात तो यह है कि पटेल भी कांग्रेसी ही थे वे भाजपा के पूर्वज नहीं हैं यह हमेशा याद रखना चाहिए। दूसरी बात यह है कि मोदी इस दावे के साथ सत्ता में आये कि मैं सब ठीक कर दूॅगा अब वे किस मर्ज की दवा साबित हो रहे हैं? वैंकय्या  को यह साफ करना चाहिए। यदि कांग्रेस की ही चूक थी तो तुम्हारे पास करने को क्या योजना है, 56 इंच का सीना कहॉ है?  देश को इस तरह गुमराह करना ठीक नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि कश्मीर में कोई बहुत बुरे हालात हों कम से कम 90 के दशक जैसे हालात फिलहाल नहीं है फिर भी चिंता कहीं अधिक इसलिए होती है कि  वर्तमान नेतृत्व नादान और बचकाना है। फैशनपरस्त और आत्ममुुग्ध लोग किसी भी बडी समस्या से बडी समस्या खुद बनते जा रहे हैं।  अन्यथा हमारे देश की महान सेना कभी इस तरह का काम नहीं कर सकती थी कि शिखण्डी की ओट में शहर की गश्त करे। अर्जुनों और हमारे सैनिकों में यही अन्तर था कि  इन्हें किसी शिखण्डी की ओट लेने की जरूरत कभी नहीं पडी और ना ही दुश्मन की हम कभी इस तरह बेईज्जती करते हैं। जिन्होनें हमारे जवानों के साथ बुरा व्यवहार किया यदि हमने भी उसी तरह का व्यवहार किया तो दोनांे में फर्क कैसा? कुल मिलाकर कश्मीर तो बहाना है जो विवाद करने पर आमादा है उनसे निबटने के हजार तरीके हैं सेना अच्छी तरह जानती है। कोई कश्मीर  की आजादी के तर्क देता है कि इसके ऐतिहासिक आधार है लेकिन कोई इनसे पूछे कि 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के कौन से आधार थे? उस समय तुम्हारी ताकत थी कि अपनी बात मनवाने के लिए देश में दंगे करवा सको, लूटमार, हत्या, आगजनी करवा सको, अराजकता फैला सको तो तुमने मौके का फायदा उठा लिया बिना किसी ऐतिहासिक आधार के देश के टुकडे करवा लिए लेकिन अब यह सम्भव नहीं हैं इसलिए हथियार उठाकर तुमने युद्ध शुरू किया है तो देश की सेना उसे कुचलकर ही रहेगी चाहे कुछ भी हो जाए इतना तो तय है।





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