गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

हम बुराई को हराते नहीं, नई तरह से बुराई को चुनते हैं।

दिल्ली उपचुनावों में आप पार्टी के उम्मीदवार की जमानत जब्त होना उसी तरह की एक बडी घटना है जैसी घटना भारतीय राजनीति में लगभग दो साल पहले उस समय घटी थी जब दिल्ली में आप पार्टी 70 में से 67 सीटों पर चुनाव जीतकर अचानक ही सत्ता में काबिज हो गयी। और इतने कम समय में ही उस लोकप्रिय पार्टी के प्रत्याशी की आज दिल्ली में ही जमानत जब्त हो गयी, पेंडुलम का इस तरह अचानक दूसरे छोर पर पहुॅच जाना भारतीय राजनीति की बडी घटना मानी जा सकती है। आप पार्टी जैसी आज है वैसी ही उस समय भी थी जब उसे लोगों ने सिर पर बिठा लिया था, यदि उस समय लोगों से पहचानने में गलती हुई तब भी इसमें आप पार्टी का कोई दोष साबित नहीं किया जा सकता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि केजरीवाल ने लोगों को बहका लिया, तब यह मानने में क्या अडचन हो सकती है कि आज मोदी लोगों को बहका रहे हैं और कल कोई दूसरा भी बहका ही लेगा। सवाल पार्टियों की गुणवत्ता से ज्यादा वोटरों की समझ का है कि उनकी हैसियत अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने की रह भी गयी है या वे शरणागति चुनने तक ही वे सिमित रह गये हैं। केजरीवाल की शरण ठीक रहेगी अथवा मोदी या कांग्रेस में से किसके दरबार में मत्था टेका जाए जनता की भूमिका केवल इतना ही तय करने तक सिमित रह गयी है।  इससे यह भी संकेत भी मिलता है कि हमारा लोकतंत्र बहुत ही अपरिपक्व और बचकाना है। केजरीवाल ने दावा किया था कि इन्टरनैट वाई-फाई के जरिए मुफ्त कर दूॅगा, बसों में मार्शल तैनात कर दूॅगा, कदम कदम पर सी0सी0टी0वी0 लगवा दूॅगा, दिल्ली को बलात्कार रहित बना दॅॅूगा, सरकार के मंत्री सरकारी आवासों में नहीं रहेगें, सरकारी वाहनों का इस्तेमाल नहीं करेगें आदि-आदि। इसी तरह  मोदी जी ने दावा किया कि मेरा सीना 56 इंच का है मैं पाकिस्तान की खटिया खडी कर दूॅगा, कश्मीर से 370 हटा दूॅगा, माओवाद को चुटकी में मसल दूॅगा,  कालाधन ले आउॅगा, दो करोड रोजगार हर साल पैदा करूॅगा, गंगा को साफ कर दूॅगा ,भारत से गंदगी हटवा दॅूगा। लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी कुछ होता दिखाई नहीं पड रहा है। अब वे 2019 के चुनाव में जुट गये हैं, ऐसे समय में कोई नया मोदी पैदा होकर नये वादे करने लगे तो यह भीड उसके पीछे हो लेगी। यह वोटरांे की आशा नहीं बल्कि हताशा है कि वे कभी इस द्वार को खटखटाते हैं कभी उस द्वार पर दस्तक देते हैं। लेकिन वे विश्वास से नहीं कह सकते हैं कि  ये मेरे प्रतिनिधि है हकीकत में जनता किसके पीछे खडी होगी यह तय करने में      हजार किस्म के सर्वेक्षण, जोड-तोड, खरीद फरोख्त का मुख्य किरदार होता है।  और दो-चार पार्टियां ही इसे तय करती हैं। इस समय राजनीति में जोकरों ने नायकों की भूमिका अख्तियार कर ली है और लोगों को भी समझ में नहीं आ रहा है कि नायक कौन है और विदूषक कौन है? तमाम रंगे हुए लोग नायक होने का भरम देने में सफल होते रहे हैं कि वे ही असली शेर हैं।



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