मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

राष्ट्रीयता की राहजनी!

इस देश में तथाकथित कम्युनिस्टों के एक गिरोह, कथित प्रगतिशील आंदोलन के स्वनामधन्य पुरोधाओं और वर्तमान में एक छोटे से छिनाल गिरोह ने भारत को एक देश नहीं बल्कि राष्ट्रीयताओं के समूह के रूप में पेश करने की पुरजोर कोशिश की है और तर्क दिया है कि इस उेश में शामिल कोई भी राष्ट्रीयता यदि  इस समूह से अलग होना चाहे तो यह उसका मौलिक अधिकार है, कश्मीर के लाखों निवासियों को उन्हीं की राष्ट्रीयता के लोगों ने  राज्य से धर्म के नाम पर निकाल बाहर किया तब  ये लोग राष्ट्रीय के सवाल की व्याख्या नहीं कर पाये और आपराधिक चुप्पी अख्तियार कर ली। काफी हद तक आततायियों के समर्थन में यह कहकर खडे हुए कि कश्मीरी पंडित हमारे वोट बैंक नहीं हैं वे बीजेपी समर्थक लोग हैं। बडी आबादी को उनके ही राज्य में उनकी ही राष्ट्रीयता के लोगों ने लूटा, बलात्कार किये, हत्यायें की और  घरों पर बाकायदा कब्जा कर लिया गया।  लेकिन राष्ट्रीयता के झंडाबरदार कुछ नहीं बोले और आज तक चुप है।, आज फिर से इस दलील के साथ ये लोग मुॅह उठाये बोल रहें हैं कि यह राष्ट्रीयताओं की आजादी का सवाल है। इनका  खुला मकसद देश की केन्द्रीय सत्ता को कमजोर करने के लिए  सारे पृथकतावादी आंदोलनों को समर्थन देना मात्र है इससे अधिक राष्ट्रवाद की इनकी कोई और समझ नहीं हैं।एक समय बिहार में इसी तरह जाति आधारित राजनीति के लिए कथित कम्युनिस्टों ने यह तर्क दिया था कि समाज में जाति विभाजन और आर्थिक विभाजन एक ही हैं इसलिए पिछडी जातियां सर्वहारा वर्ग में ही आती हैं इस आधार पर सवर्ण, बुर्जआ वर्ग का प्रतिनिधि है इसलिए जातिगत आधार पर राजनीति की जानी चाहिए। कुल मिलाकर लालू, नितिश, पासवान और मायावती जैसे लोगों ने दशकों तक लोगों को इसी तर्क से बेवकूफ बनाये रखा और कम्युनिस्ट इनके पिछलग्गू बने रहे कुछ हद तक आज भी इनकी वैचारिक समझ यही है।  इसी तरह पृथकतावादी आंदोलनों को समर्थन देना इनका लक्ष्य है। यह बहस काफी लम्बी है। लेकिन जो गौर करने की बात है कि मोदी ने इस विरोधाभाष को चतुराई के साथ पकडा, मोदी ने दूसरे तरह के राष्ट्रवाद की अवधारणा पेश की है मोदी का राष्ट्रवाद तीन तलाक, बीफ और राम मन्दिर तक ही बोल पाता है इससे अधिक इनकी भी कोई समझ नहीं हैं कुल मिलाकर इन दो किस्म की मूर्खताओं, धूर्तताओं के बीच राष्ट्र अपना वजूद तलाशने में लगा है। इस बीच मौका है जिसमें मोदी पूरे देश में घूम-घूमकर वोट तलाश रहे हैं और कथित राष्ट्रवादी समूह की अवधारणा वाले लोग देश को तोडने की मंशा के साथ कश्मीरी आतंकवादियों के साथ नारे लगा रहे हैं आजादी! पंडितों से उनकी ही धरती छीन कर ये किस मुॅह से राष्ट्रीयता की दुहाई दे रहे हैं कोई नहीं जान सकता है।


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