शनिवार, 22 अप्रैल 2017

और अब सोनू की शरारत ।

पिछले कुछ दिनों से अजान और भजन के बीच महाभारत छिडा दिखता है, सोनू निगम के मिजाज में एक हल्कापन तो हमेशा से ही रहा है लेकिन वे इतनी घटिया हरकत करेगें इसकी तो शायद ही किसी को उम्मीद रही होगी। अनायास ही जिस तरह उन्होंने अजान के खिलाफ बात कही उसका कोई प्रसंग ही नहीं था और ना ही कोई जरूरत थी। कमोवेश इसी तरह आमिर खान ने भी जब अनायास ही अपनी पत्नी का हवाला देकर कहा कि भारत  रहने लायक नहीं रह गया है वे कहीं बाहर भी जाने पर विचार कर रहे हैं। इन दोनों के बयानों से लगता है कि सैलीब्रैटी को मोहरा बनाकर  कुछ लोग सजिशन बहस को पर्दे के पीछे से संचालित कर रहे हैं। यह नये किस्म का धंधा बनता जा रहा  हैं जिसमें पैसा और पब्लिसिटी दोनों एकसाथ मिल सकते हैं। इसका मतलब ये कतई नहीं हैं कि सोनू और आमिर कोई मासूम हैं इनके साथ कोई ज्यादती हुई होगी। ये किसी का मोहरा ऐसे ही नहीं बने होगें, इसमें लम्बा राजनीति मोलभाव हुआ हो सकता है और इन्होंने भरपूर कीमत वसूली होगी। इन्होनें चाहे जितनी भी कीमत वसूली हो उससे कई गुना अधिक कीमत इन्हें चुकानी पडी है। और इन दोनांे के लिए यह जर्बदस्त घाटे का सौदा रहा है। बयानों के बाद आमिर और सोनू दोनों की अपनी ही लुटिया डूब गयी। हमें इस राजनीति पर गौर करना होगा। यदि हम आमिर के बयान पर गौर करें तो सवाल उठता है कि क्या भाजपा की सरकार आने से देश का ही चरित्र बदल जाऐगा, किसी सरकार में इतनी ताकत है कि वह देश का चरित्र बदले दे? फिर आमिर ने  भारत के बारे में इतनी बडी बात कैसे कह दी क्या वे भारत को जानते हैं? या फिर उन्होंने मोदी को ही भारत समझ लिया। जाहिर है कि उन्होनें लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट पढी। वे जिस खेमे के आदमी हैं उस खेमे को लगता था कि  आमिर के बयान से  उनका पक्ष मजबूत हो जाऐगा और याकार के खिलाफ असहिष्णुता के बारे में उनकी धारणा लोगों में स्वीकृत हो सकती है। आमिर को भी अपने बारे में खामखयाली रही होगी अमूमन इस स्तर पर खामखयाली होना बडी आम बात है।  इन्हें लग सकता था कि इस तरह मोदी सरकार को कटघरे में खडा किया जा सकता है। परिणाम उल्टा ही हुआ, आमिर की जो अपनी इमेज थी वह भी बट्टे खाते में चली गयी। इसी तरह इस बार सोनू निगम ने अघोषित तरीके से सरकारी पक्ष को मजबूती देने के लिए यह स्क्रिप्ट पढी कि अजान से उनकी नींद में खलल पडता है। यह एक राजनीतिक मकसद से दिया गया बयान था जो कि सोनू के गले पड गया और उनके बाल बन गये, इनकी हजामत भी जल्द ही बननी चाहिए इसकी उम्मीद की जा सकती है। कीर्तन हो या अजान हो ये सोये हुए लोगों को नींद से जगाने के लिए ही होते हैं यदि लोग सोये ही रह गये तो फिर अजान और कीर्तन का कोई मतलब नहीं रह जाता है, सोनू भी आध्यात्मिक भाषा में एक प्रकार की मूर्छा/नींद में बोल रहे हैं इस मामले में सोनू को भी अब जागना चाहिए। जिस तरह सोनू ने नफरत फैलाने की कोशिश की वह पूरी तरह निन्दनीय तो है ही बल्कि दण्डनीय भी होना चाहिए। लोगों को याद होगा कि जब लालकृष्ण आडवानी रथ यात्रा लेकर पूरे देश के भ्रमण पर निकले थे तब जयश्रीराम उनका नारा था,  यह शब्द एक राजनीतिज्ञ के मुॅह से निकल कर इतना खतरनाक हो गया कि देश में दंगों की स्थिति आ गयी और आज इस शब्द का ओज, इसकी निष्कपटता और माधुर्य कहीं खो सा गया है। गॉव  कस्बों में जैराम जी की और राम-राम भैया, दुआ सलाम जैसी ग्राह्यता रखते रहे हैं लेकिन गलत मकसद के लिए यही शब्द सामाजिक विभाजन का प्रतीक बना दिया गया है। इसी तरह तुर्की में रूसी राजदूत को गोली मारने के बाद हत्यारे ने जिस तरह अल्लाहू अकबर कहा उसके बाद लोग इस शब्द को सुनकर चौंकते हैं कि कहीं आतंकवादी  ना आ गये हों। फ्रांस से लेकर जर्मनी और दूसरे यूरोपीय देशों में आतंकवादी जिस तरह धार्मिक शब्दों का इस्तेमाल करके लोगों की हमदर्दी हासिल करने की कोशिश करते हैं उसमें हमें फर्क करना चाहिए। आतंकवाद पर हम मौन रहे और धार्मिक शब्दों पर सवाल खडा कर दें यह दूसरे किस्म का आतंकवाद है। इसमें शब्दों का कोई गुनाह  नहीं है, शब्द विवादास्पद इस तरह होते भी नहीं हैं विवादास्पद वे लोग हैं जो शब्दों से उपजे पवित्रतम एहसास को भी कलुषित कर रहे हैं।  इसमें अजान या कीर्तन को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है?


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