शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

चाहे देश का विभाजन रहा हो या देश में विभाजन, यह गलत है।

माना जाता है कि साम्प्रदायिक राजनीति द्विअर्थी संवाद की तरह काम करती है, यहॉ पर द्विअर्थी का मतलब यमक अलंकार नहीं है बल्कि भाव-भंगिमा, अंदाज, स्वर के उतार चढाव और चेहरे के बदलते रंगों और मंतव्यों से है। आप कोई बात कहें कामुक मानसिकता उसका इस तरह चित्र बना लेती है जिसका कोई मतलब ही नहीं, यही उसकी कथित रचनात्मकता है जिसका सामान्य आदमी अनुमान भी नहीं लगा सकता है। साम्प्रदायिक राजनीति और मानसिकता भी इसी तरह अपना कथित रचनात्मक खेल खेलती है। अल्पसंख्यकवाद से लेकर, राष्ट्रवाद, संस्कृति, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, योग, असहिष्णुता, खाने की आजादी, गौरक्षक दल, तलाक, लव जिहाद  या  धर्म की आजादी जैसे मुद्दों का मतलब केवल इतना रह गया है जैसे कि कोई द्विअर्थी संवाद करे। आप कहें कुछ लेकिन उसका अभिप्राय मतलब कुछ और ही होता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि यह जहर आखिर आता कहॉ से है? उन नेताओं से जिन्हें जनता चुनती है? अथवा वे नेता जो जनता में यह भावना पैदा करने की हैसियत रखते हैं। दोनो ही बातें गलत हैं। कम से कम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शानदार इतिहास पर नजर डालने से यह साफ हो जाता है कि हमारे नेता बहुत उॅची काबिलियत के लोग थे जिन्हें जनता ने बहुत करीब से जनसंघर्षों की आग में तपते निखरते देखा। लेकिन राजनीति के अपने तकाजे हैं वे केवल सद्इच्छाओं से तय नहीं किये जा सकते हैं। आजादी के संघर्ष में हमारे पास सशस्त्र संगठन नहीं था जोकि इन अराजक, हिंसक, लुटेरों ,कातिल तत्वों पर नकेल कस सकता। निहत्थे अहिसंक लडाई का एक पक्ष तो ठीक था कि हम अंग्रेजांे के खिलाफ लोगों में नैतिक साहस पैदा करें वह काफी हद तक सफल भी रहा, लेकिन हमारे पास वैकल्पिक सुरक्षा नहीं थी जिन्ना इस बात को जानते थे , लिहाजा समाज में अराजकता पैदा हो गयी जाहिर ही है कि गॉधी इससे डर गये, कोई भी होता उसे डरना ही पडता ऐसे समय में  दूसरा कोई उपाय भी नहीं बचता है,  परिणामस्वरूप विभाजन हुआ और उन सभी सवालों पर हमेशा के लिए पर्दा पड गया जिसकी खातिर आजादी की इतनी कठिन जंग चली थी। कमोवेश आज फिर से वही हालात हैं बेरोजगारी चरम पर है, महंगाई से लेकर सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, जैसे तमाम मुद्दे पूरी भयावहता से मुॅह बाये खडे हैं लेकिन अब संस्कृति, धर्म, राष्ट्रवाद के नाम पर द्विअर्थी संवाद की भाषा माहौल में असरकारक होती दिखाई पड रही है। यह सब अनायास ही नहीं है। 

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