शनिवार, 29 अप्रैल 2017

धीरे-धीरे बोल, जशोदा बेन सुन ना लें।

तलाक का मुद्दा इन दिनों राष्ट्रीय समस्या के तौर पर उठाया जा  रहा है कुछ जगहों पर तो तलाक को कश्मीर और माओवाद से भी ज्वलतं और गम्भीर समस्या के तौर पर पेश किया जा रहा है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि यह बहस महिलाओं की सामाजिक ,आर्थिक स्थिति पर वाकई कोई गम्भीर चिंतन के नजरिए से उठाई जा रही हो। यह सिर्फ साम्प्रदायिक छींटाकशी स्तर की राजनीति है, और बहाना महिलाओं की समस्या के तौर पर दिखाया जा रहा है। जैसे इन लोगों ने राम मन्दिर अभियान को जिस सफलता से सामाजिक तनाव का प्रतीक बना दिया और इसकी सफलता से उत्साहित होकर दूसरे पक्ष ने गुजरात दंगों पर इस तरह राजनीति की जिससे कि उन्हें खास पहचान मिले और सामाजिक धुव्रीकरण को तेज किया जा सके लेकिन इनका पासा उल्टा पडा और इसका भरपूर फायदा मोदी ने उठाया। आज लगभग पूरी राजनीति इसी तरह के दॉव-पेंचों  तक सिमट कर रह गयी है। गौमंास से लेकर एन्टी रोमियो अभियान तक की जितनी भी गतिविधियां हैं वे सब सामाजिक धुव्रीकरण की मंशा से की जा रही हैं ताकी राजनीतिक मकसद के लिए इनका लाभ उठाया जा सके। तीन तलाक का मुद्दा उठाने के पीछे यही मकसद है। हैरत की बात यह है कि आधी आबादी की झंडाबरदारी करने वाली बडी बिन्दी ब्रिगेड इस समय खामोश है। जब एक राजनीतिक दल कथित तौर पर महिला उत्पीडन का मुद्दा उठा रहा है तो महिलाओं में हिन्दू मुसलमान का बफटवारा कैसे किया जा सकता है? यदि ऐसा हो सकता है तो फिर आधी आबादी आंदोलन का सिद्धान्त का आधार क्या रह जाऐगा? यह सवाल कोई नहीं पूछ रहा है। केजरीवाल ने जिस समय बसों में मार्शल, हर जगह पर सी0सी0टी0वी0 लगाने  मुफ्त वाई-फाई की बातें कही थी, तब भी लोग उन्माद में ऐसे ही पागल थे जैसे कि आज मोदी के पीछे पागल हैं। मोदी कब्रिस्तान और शमशान का मुद्दा उठाते हैं तो सरकारें उलट जाती हैं इससे यह साबित नहीं होता है कि शमशान और कब्रिस्तान को लेकर कोई समस्या है, इससे केवल इतना ही साबित होता है कि लोगों का झुकाव उन्मादी राजनीति की ओर बढता जा रहा है। उन्माद इतना आकर्षक और असरकारक कैसे होने लगता है यह अलग से एक दिलचस्प बहस है। चाहे दो साल पहले का केजरीवाल का उन्माद हो जिसमें मोदी समेत पूरी कांग्रेस बह गई थी या फिर मोदी  उन्माद हो जिसमें केजरीवाल बह गये इस तरह की राजनीति की उम्र कोई लम्बी नहीं होती। अभी लोगों को उसी तरह लग रहा है कि मोदी सारी समस्या हल कर देगें जैसे केजरीवाल के समर्थकों को लगता था कि एक पढा-लिखा अदमी भ्रष्टाचार मिटाने राजनीति में आ गया है जो कहता था कि कीचड की सफाई करने के लिए कीचड में उतरना (राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लडना) जरूरी है। वैसे ही मोदी  महिलाओं की समस्या पर कितने चिंतित दिखने की कोशिश कर रहे है।  कहीं जशोदाबेन ने सुन लिया तो!


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