रविवार, 9 अप्रैल 2017

मोदी की असली ताकत भक्त नहीं, विरोधी हैं।



पहलू खान की हत्या को लेकर मोदी, वसंुधरा और भाजपा के लोगों को लोगों द्वारा सवालों के कटघरे में लाया जा रहा है। इन लोगों का सवाल यह नहीं है कि एक आदमी को भीड दिनदहाडे खुलेआम कैसे मार सकती है? इस वहशी, जालिमाना,  आदिम कबिलाई न्याय पर सत्ता मौन कैसे है? स्वतः संज्ञान लेने वाली अदालतों, पुलिस, खुफिया विभाग और  तमाम मानवाधिरवादी संगठनों की सक्रियता उस तरह नहीं आई जैसे  कि किसी भी संवेदनशील समाज में होना चाहिए। जो लोग सवाल भी उठा रहे हैं वे इसे अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की तरह दिखा रहे हैं, मोदी की यह खुशनसीबी है कि उन्हे चाहे भक्त बहुत काबिल ना भी मिले हों लेकिन विरोधी हद दर्जे के नाकाबिल मिले हैं। किसी आदमी की हत्या कर दी जाती है और हम साबित करने में लगे है कि वह इसलिए मारा गया क्योंकि वह मुसलमान था, मोदी भी यही साबित करना चाहते थे लेकिन इसे वे अपने मुॅह से कहें तो नुकसान हो सकता था अपनी बात वे विरोधियषें से कहलवाने में काफी कुशल हैं या कहा जा सकता है कि उनके विरोधि इतने मूर्ख हैं कि वे मोदी के जाल मे असानी से आकर फॅस जाते हैं। मोदी जी अपनी मुद्राओं, हाव-भाव, तेवर और अंदाज से वे केवल इशारा करते हैं और  कांग्रेस से लेकर ,मुलायम, मायावती, वामपंथी और भी तमाम  लोग उसकी जिस तरह व्याख्या  करते हैं इससे धुव्रीकरण और तीव्र हो जाता है।  इन मामलों में कुछ गैरजिम्मेदार लोग इस तरह प्रतिक्रिया करते हैं कि जैसे उन्होनें अल्पसंख्यकों, जातियों का ठेका ले लिया है, हत्या उनके लिए उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि जाति और धर्म है। ऐसे वक्त भी वे वोटों की राजनीति से उपर नहीं उठ पाते हैं लोग समझ जाते हैं कि चाहे भाजपा और उनके सहयोगी संगठन साम्प्रदायिकता करते हैं लेकिन इनके विरोधी कम खतरनाक साम्प्रदायिक नहीं हैं। इससे ज्यादा उन्हें कोई समझ नहीं है। गुजरात दंगों की जिस तरह व्याख्यायें की गयी उसने मोदी या इस तरह की ताकतों को लगातार मजबूत ही किया और परिणाम सामने है कि दिल्ली फतह के बाद अब देश के सबसे बडे राज्य उत्तरप्रदेश में भी इन्हीं ताकतों को सत्ता मिल गयी है। यह रूझान कहॉ तक जाऐगा कहना कठिन है। लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि मोदी जो बात इशारों में कहते हैं उसमें एक प्रकार की पर्दादारी है लेकिन कथित प्रगतिशील ताकतें जिस बेहूदे तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं उसके बाद लोगों का मोदी के पक्ष में झुकने का तर्क समझ में आता भी है और कोई आश्चर्य भी नहीं करता है।  इसलिए व्याख्या का इतना महत्व बताया गया है, यह अर्थ का अनर्थ भी कर सकती है। भक्तों को तो सिर्फ गाली गलौच के कुछ करना ही नहीं है। जब सारा काम मोदी के विरोधी ही कर दे रहे हैं तो फिर चुनाव सभा को सम्बोधित करने और मन की बात कहने के सिवा मोदी के पास करने को कुछ बचता भी नहीं हे बाकी समय वे उन परियोजनाओं का उद्घाटन करने में बिता देते हैं जिन्हें पूर्ववर्ती सरकारों ने लागू किया था।  मोदी की कुशलता देखिए इसके लिए वे पहले की सरकारों को गालियां भी देते हैं और उनके गीत भी गाते हैं  वे दोनों काम एक साथ भी कर लेते हैं। कल शेख हसीना जब गुलाबजामुन के डिब्बे लेकर आयी तो वे गुलाब जामुन मोदी की जुमलेबाजी के लिए नहीं थे, वे इस देश के उस इतिहास को सलाम कर रही थी जिसे मोदी गाली देते हैं। मोदी को कुछ तो शर्म आई ही होगी कि इतने शादार मंहगे सूट पहनने के बाद भी इंन्दिरा गॉधी के जलवे के सामने वे कहीं भी नहीं ठहरते हैं। वक्त इतने बेहतर तरीके से आईना दिखाते रहता है लेकिन हम जानबूझ कर भी अनजान दिखने की कोशिश करते हैं।

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