मंगलवार, 16 मई 2017

कर्णन का उबाल और बबाल।

जस्टिस कर्णन प्रकरण से भारतीय न्याय व्यवस्था के भीतर चल रहे गम्भीर विकारों की झलक मिलती है, कहा जा सकता है कि इसने पूरी न्याय व्यवस्था को चौराहे पर ला दिया है। बहुत से मामलों में न्यायालय स्वतः संज्ञान लेते हुए अपनी पहलकदमी से संकटों के निबटारे की पहल करता रहा है हांलाकि कुछ हलकों में इसे अतिवादी न्याययिक सक्रियता तक कहा गया। लेकिन लोगों का इसको ना सिर्फ समर्थन मिला बल्कि इसे इस व्यवस्था पर अन्तिम भरोसा तक कहा गया।  अब सवाल यह खडा होता है कि हमारी व्यवस्था में कोई तरीका है जो इस तरह के मामले का स्वतः संज्ञान लेने की हैसियत रखता है, और इस तरह के संकटों का निबटारा कर सकता है।  ऐसा लम्बे समय तक नहीं हो सकता है कि न्यायिक विशेषाधिकार इस हद तक चले जांए कि देश में न्यायिक अराजकता जैसे हालात हो जाएं और देश तमाशा देखता रहे यह विकट स्थिति है। संविधान की प्रभुसत्ता और न्याय की व्यवस्था का यह मतलब नहीं कि इस नाम पर ही अराजकता हो जाए। हमारे यहॉ लोकमान्यता रही है कि न्यायालय व्यवस्था से उपर की बात है उसे यह हैसियत संविधान प्रदत्त नहीं है, संविधान के अनुसार तो न्यायपालिका व्यवस्था का ही एक अंग है। इसलिए जानकार लोग इस तरह के मामलों से ज्यादा चिंतित नहीं होते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि जितना भ्रष्टाचार व्यवस्था में होगा उससे अधिक भ्रष्टाचार न्यायपालिका में होगा क्योंकि इसे लोगों का विश्वास हासिल है, भ्रष्ट तत्व यहॉ अधिक सुरक्षा महसूस कर सकते हैं।  जिस तरह आई0पी0एल0 खिलाडी मुॅह मांगी कीमत पर बिकते हैं वैसे ही वकील भी 30 लाख रूपये प्रति पेशी का बिल आराम से भेजते हैं। इन्हें कोई शर्म ही नहीं।  एक प्रकार से न्याय की मंडी लगी है  जिसके पास पैसा है वह अलग अलग तरीकों से न्याय को प्रभावित करने की तरकीबें करता है और सफल भी रहता है। यह सारा फ्रस्टेशन इसी तरह की घटनाओं मे  उभर कर आता है।  यकीनन आज पूरा तंत्र संविधान की प्रस्तावना की मूल भावना के खिलाफ काम कर रहा है। इस सवालों को नजरअंदाज करना लगातार घातक होता जाऐगा। कर्णन प्रकरण व्यक्तिओं के बीच सत्ता संघर्ष के तौर पर नहीं समझा जा सकता है बल्कि  इस समूची व्यवस्था के पतन के तौर पर देखा जा सकता है और माना जा सकता है। कि इस उदाहरण ने लोगों का वह विश्वास भी तोडा है कि न्यायपालिका व्यवस्था से उपर है। जैसा तमाशा कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में अक्सर देखा जाता है वैसा ही इस मामले में भी दिखाई पड रहा है, यह त्रासदी है।


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